पुनर्जागरण क्या हैं? पुनर्जागरण के कारण ||

पुनर्जागरण का अर्थ (Meaning of Renaissance)

‘रेनेसा'” अर्थात् पुनर्जागरण फ्रेंच भाषा का शब्द है जिसका अर्थ ‘फिर से जागना’, ‘नूतन जन्म’ या पुनर्जन्म है। फ्रेंच भाषा में यह शब्द लैटिन भाषा के रेनेस्कोर से लिया गया है। 

प्रोफेसर जान टामसन के मतानुसार, ‘रेनेसा’ शब्द का प्रयोग सामान्यतः चौदहवीं शताब्दी में इटली के कला एवं ज्ञान के क्षेत्र में होने वाले नवजागरण के लिए किया जाने लगा।

प्रोफेसर लुकस ने इसे और स्पष्ट करते हुए लिखा है कि, “रेनेसां शब्द का अर्थ इटली के उन सांस्कृतिक परिवर्तनों से है, जो चौदहवीं शताब्दी से प्रारंभ होकर 1610 ई. तक समूचे विश्व में फैल गए।

पुनर्जागरण का अर्थ इस प्रकार है :

1. डेविस के अनुसार, “पुनर्जागरण शब्द मानव के स्वतन्त्रता प्रिय, साहसी विचारों को जो मध्य युग में धर्माधिकारियों द्वारा जकड़े व बंदी बना दिए गए थे, को व्यक्त करता है।” 

2.स्बेन ने पुनर्जागरण के अर्थ को इन शब्दों में स्पष्ट किया है : मध्ययुग की परिसमाप्ति तथा आधुनिक युग के प्रारम्भिक चरण में प्रकट हुए बौद्धिक परिवर्तनों को सामूहिक रूप से पुनर्जागरण कहा जाता है।’ इसने विशेष क्षेत्र संस्कृति पर ही बल न देकर उन सभी क्षेत्रों पर बल दिया है जिनसे बुद्धि व ज्ञान का विकास होता है। 

3.लार्ड एक्टन के अनुसार, “नई दुनिया के प्रकाश में आने के उपरान्त प्राचीन सभ्यता की पुनः खोज, मध्य युग के इतिहास को अन्त करने वाली तथा आधुनिक युग के आरंभ को सूचित करने वाली दूसरी सीमा की प्रतीक है।”

पुनर्जागरण के कारण (Causes of Renaissance)

 

पुनर्जागरण किसी एक आकस्मिक घटना का परिणाम नहीं था बल्कि यह एक क्रमिक तथा क्रमबद्ध विकास का परिणाम था ये घटनाएं किसी एक देश अथवा एक काल में नहीं हुई। डब्ल्यू. एन. बीच ने लिखा है कि, “पुनर्जागरण अकस्मात न होकर विभिन्न पटनाओं के सम्मेलन होने पर धीरे-धीरे हुआ। इसके लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे :

 

1. धर्मयुद्ध (Cruseds) धर्मयुद्धों में पुनर्जागरण के लिए वातावरण तैयार किया। यूरोप की अधिकांश जनता इसाई धा को मानती थी जिनका पवित्र तीर्थ स्थल जेरुसलम था। इस्लाम के उत्थान तथा विस्तार के बाद जेरूसलम पर मुसलमानों का अधिका हो गया था। इस्लाम के मानने वाले सेल्जुक तुर्की का जेरुसलम पर अधिकार था। ये धार्मिक असहिष्णु था। इन्होंने ईसाइयों द्वारा जेरुसलम की यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बावजूद भी यदि कोई ईसाई जेरुसलम की यात्रा करता था तो उस या तो लूट लिया जाता था या उसकी हत्या कर दी जाती थी।

अतः ईसाइयों ने अपने पवित्र स्थल जेरुसलम को मुसलमानों के अधिकार से मुक्त कराने के लिए मुसलमानों के साथ जो युद्ध लड़े ये इतिहास में ‘धर्मयुद्ध’ (क्रुसेड) के नाम से जाने जाते हैं। ये युद्ध लगभग दो शताब्दियों ( 1095-1295 ई.) तक चले । इन युद्धों का पूरब व पश्चिम के समाज पर व्यापक असर पड़ा।

युद्धों के कारण यूरोप के लोगों का सम्पर्क ज्ञान से प्रकाशित पश्चिम के लोगों के साथ हुआ जिसके परिणामस्वरूप यूरोपीय लोगों ने सभ्यता के कई तत्व ग्रहण किए। यूरोपवासियों से तर्क शक्ति, प्रयोग पद्धति तथा वैज्ञानिक खोजों की जानकारी हुई। इस सम्पर्क से उनका रहन-सहन, खान-पान भी प्रभावित हुआ। दूसरे धर्म युद्धों के कारण यूरोपियों को कई नए मार्गों की जानकारी हुई जिससे व्यापार एवं वाणिज्य का विकास हुआ।

पूर्व के देशों का सामान यूरोप में जाने लगा जिससे व्यापारिक नगरों का उत्थान हुआ नगरों में रहने वाले लोगों में से मध्यम वर्ग (बुर्जआ) का उत्थान हुआ जिसने पुनर्जागरण की आधारशिला रखी। तीसरे युद्धों में भाग लेने वाले सामन्तों में से कई लोगों की मृत्यु हुई, जिससे सामन्त प्रथा कमजोर हुई। चौथे धर्म युद्धों में पोप की सम्पूर्ण शुभ कामनाओं तथा आशीर्वाद के बाद भी जब साइयों की युद्धों में पराजय हुई तो पोप की प्रतिष्ठा को धक्का लगा तथा उसकी शक्ति कमजोर पड़ने लगी परिणामतः धर्म के धनों में लचीलापन आने लगा। मुस्लिम साहित्य ने भी पश्चिमी देशों को काफी प्रभावित किया। इस प्रकार धर्म युद्धों ने पुनर्जागरण की आवश्यक पृष्ठभूमि का निर्माण किया।

2. व्यापार का विकास (Development of Trade) : व्यापार वाणिज्य का विकास तथा आर्थिक समृद्धि पुनर्जागरण का एक प्रमुख कारण था। सामन्तवाद के पतन के अन्तिम चरण में यूरोप में व्यापारी वर्ग पैदा हुआ जिसके नेतृत्व में पूर्वी व पश्चिमी देशों के बीच व्यापार बढ़ा। धर्मयुद्धों के कारण ये व्यापारिक संबंध स्थापित हुए थे। व्यापार के विकास ने दो-तीन प्रकार से पुनर्जागरण की भावना को विकसित किया। पहला यूरोप के व्यापारियों ने अपने व्यापार के सिलसिले में दूर-दूर देशों की भौगोलिक खोज की। इन देशों के नए विचारों तथा प्रगतिशील तत्वों से यूरोपीय व्यापारी परिचित होने लगे तथा जब वे अपने देश में वापस लौटते तो इन नए विचारों को अपने साथ लेकर आते थे। दूसरा व्यापार के विकास के परिणामस्वरूप व्यापारियों के पास बड़ी मात्रा में धन इकट्ठा होने लगा। इस धन का प्रयोग उन्होंने विज्ञानों को आश्रय देने में तथा स्वयं विद्या ग्रहण में किया। इन कार्यों के फलस्वरूप ज्ञान का विकास होने लगा। व्यापारियों के प्रश्रय में रहकर अनेक वैज्ञानिक साहित्य का सृजन करने लगे, विज्ञान की नई-नई खोजें करने लगे तथा ज्ञान का प्रकाश फैलाकर अज्ञान के अंधकार को मिटाने लगे। तीसरे व्यापार के चलते नगरों का उदय हुआ। वेनिस,मिलान, फ्लोरेंस, न्यूरेमबर्ग, जेनोआ, रोम आदि नगरों का उदय व्यापार के कारण हुआ। नगरों के स्वतन्त्र वातावरण में व्यापारियों को रहने का अवसर मिला। नगरों के स्वतन्त्र वातावरण में नए विचार भी पनपने लगे। इन विचारों के सम्पर्क में आने से लोग पुरानी परिपाटी, पुरानी संस्थाओं, पुरानी व्यवस्था तथा प्रचलित चर्च के अंधविश्वास में शंका प्रकट करने लगे। इसी शंका से पुनर्जागरण का जन्म हुआ। चौथे व्यापारी वर्ग ने चर्च की कड़ी आलोचना करके चर्च के महत्त्व को कम कर दिया। चर्च के पादरियों का विचार, “सूद लेना पाप है” व्यापारियों के विचार “मुनाफा कमाना पाप नहीं है।” से एकदम विपरीत था। इस प्रकार व्यापारियों ने चर्च की कड़ी आलोचना की क्योंकि चर्च अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विरोध करता था। इस प्रकार व्यापार के विकास ने पुनर्जागरण को आगे बढ़ाया।

3. अरब व मंगोल सम्पर्क (Arab and Mangol Contacts) : अरबों व मंगोलों ने पूर्वी देशों के संचित ज्ञान को यूरोप तक पहुंचाया। अनेक प्रसिद्ध मंगोल नेताओं चंगेजखाँ, कुबुलाई खाँ, ओगो तईखाँ, मगू खाँ आदि ने विशाल साम्राज्य स्थापित किया। इस साम्राज्य में चीन व मंगोलिया के अलावा रूस, हंगरी, पोलैंड आदि के भू-भाग भी सम्मिलित थे। यूरोप के विभिन्न भागों में रूस, स्पेन, सिसली, सार्डिनिया आदि में अरब लोग बस गए थे। वहां उन्होंने कई शिक्षण संस्थाएं स्थापित की। इन शिक्षण संस्थाओं में धर्म निरपेक्ष ज्ञान-विज्ञान का अध्ययन एवं अध्यापन होता था। यहां प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिकों प्लेटो एवं अरस्तू के विचारों का अध्ययन किया जाता था। इस प्रकार अरबों ने यूरोपियनों का ध्यान दार्शनिक क्षेत्र की तरफ आकर्षित किया। इसके फलस्वरूप आक्सफोर्ड एवं पेरिस विश्वविद्यालयों में बौद्धिक आन्दोलन प्रारंभ हुआ।

 

मंगोल नेता चंगेज खां का उत्तराधिकारी कुबुलाई खां एक उच्च श्रेणी का विद्वान् एवं विद्वानों का आश्रयदाता था। उसके दरबार में अनेक विद्वान्, दार्शनिक, व्यापारी एवं धर्मप्रचारक आते थे। उसकी राजसभा पोप के दूतों, भारत के बौद्ध भिक्षुओं, पेरिस, इटली तथा चीन के दस्तकारों, भारत के गणितज्ञों एवं ज्योतिषाचार्यों से भरी रहती थी। प्रसिद्ध इटालियन यात्री मार्कोपोलो 1272 ई. में उसी के दरबार में गया था। वह उसके दरबार तथा साम्राज्य की चकाचौंध को देखकर आश्चर्यचकित हो गया था। वहां से लौटकर उसने अपनी यात्रा का विशुद्ध वर्णन किया। इस वर्णन से यूरोपवासियों के मन में भी अपनी संस्कृति को विकसित करने की भावना जागृत हुई। उसके विवरणों को पढ़कर अनेक यात्री पूरब की सम्पत्ति एवं सभ्यता की जानकारी प्राप्त करने हेतु प्रेरित हुए। यूरोपीय जनता ने चीन के बारूद, छापेखाने, कागज, कम्पास आदि का ज्ञान प्राप्त किया तथा उनमें भी विज्ञान के सिद्धान्तों को विकसित करने की भावना जागृत हुई।

 

4. कागज व छापाखाना (Inventation of Paper and Printing Press): कागज एवं छापेखाने के आविष्कार ने पुनर्जागरण के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। कागज व छापेखाने का आविष्कार सबसे पहले चीन में हुआ। अरबों ने इनका प्रयोग चीन से सीखा तथा उन्होंने इसकी जानकारी यूरोपवासियों को दी। सबसे पहले इटली के लोगों ने अच्छी किस्म का कागज बनाया तत्पश्चात यूरोप के अन्य देशों में भी कागज बनने लगा। इसी समय यूरोप के कई नगरों में भी छापेखाने की स्थापना हुई। | जर्मनी के जान गुटेनबर्ग ने 1450 ई. में ऐसी मशीन की खोज की जो आधुनिक प्रेस की पूर्ववर्ती कही जा सकती है। कैक्सटन ने 1477 ई. में इंग्लैण्ड में छापाखाना स्थापित किया। धीरे-धीरे इटली, जर्मनी, स्पेन, फ्रांस आदि देशों में भी छापे खाने का प्रयोग होने लगा। कुछ ही समय में यूरोप के इन देशों में 200 से अधिक छापेखाने स्थापित हो गए। कागज व छापेखाने की खोज ने पुनर्जागरण को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। छापेखाने की खोज से पहले हाथ से लिखी हुई पुस्तकें काफी महंगी होती थीं जिन्हें आम आदमी नहीं पढ़ सकता था। परन्तु अब बड़ी संख्या में पुस्तकें प्रकाशित होने लगी जिससे आम आदमी भी पुस्तकें पढ़ने लगा है इससे ज्ञान  पर विशेष लोगों का एकाधिकार समाप्त हो गया। “पुस्तकों में ऐसा लिखा है” कहकर अब आम आदमी को गुमराह नहीं किया जा सकता था क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर वह स्वयं पुस्तकें खरीदकर पढ़ सकता था। स्थानीय भाषाओं में चर्च एवं धर्म संबंधी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई इससे स्थानीय भाषाओं का साहित्य विकसित हुआ। परिणामस्वरूप जन-साधारण की साहित्य में रुचि बढ़ी। बाइबल अब हर घर में पहुंच गई जिससे जनता उसका सही अर्थ समझने लगी। इससे धार्मिक अंधविश्वास हटने लगा छापेखानों के कारण लोगों की शिक्षा में रुचि बढ़ी जिससे उनका बौद्धिक विकास हुआ। 

बेन फिमर ने लिखा है कि “छापेखाने के आविष्कार ने मध्यकाल के भार को दूर कर दिया तथा रहस्यमय चिन्तन के स्थान है। पर बौद्धिक मनन को स्थान दिया तथा व्यक्तिवाद की भावना स्थापित की। प्रत्येक मनुष्य यह सोचने लगा कि उसके विचार भी कुछ महत्व के हैं।”

विल ड्यूरा ने लेखन कला के पश्चात् मुद्रणकला को ही इतिहास का सबसे बड़ा आविष्कार माना है जिसने बौद्धिक चेतना के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

5. तुकों का कस्तुनतुनिया पर अधिकार (Occupation of Constantinople by Turks) : 1453 ई. में कस्तुनतुनिया के पतन से ही मुख्य रूप से पुनर्जागरण का प्रारम्भ माना जा सकता है। इतिहासकार फिशर ने लिखा है कि, “कस्तुनतुनिया के पतन के फलस्वरूप पश्चिम यूरोप में जो ज्ञान का उदय हुआ उसके प्रभाव एवं प्रसार ने नवयुग के आगमन की सूचना दी।  कस्तुनतुनिया पूर्वी रोमन साम्राज्य (बैजेन्टाइन साम्राज्य) की राजधानी थी जो ईसाइयत का केन्द्र थी। सैलजुक तुर्कों ने इस पर 1458 ई. में अधिकार जमा लिया था। यह नगर पिछले 200 वर्षों से यूनानी ज्ञान, दर्शन एवं कला का एक प्रसिद्ध केन्द्र था परन्तु असभ्य तुर्कों के लिए इस संस्कृति का कोई महत्त्व नहीं था। यहां विद्वानों का जमघट लगा रहता था। परन्तु असभ्य तुर्कों ने उन पर अनेक अत्याचार किए इसके कारण पीड़ित विद्वान् भागकर यूरोपीय देशों में जाने लगे। वे अपने साथ यूनानी एवं रोमन ग्रन्थ भी यूरोप विशेष रूप से इटली के विभिन्न नगरों में ले गए। इन विद्वानों के यूरोप में आश्रय लेने के कारण अंधकारपूर्ण यूरोप में ज्ञान की किरणें फैलने लगीं। बौद्धिक विकास के इस काल में इन विद्वानों ने यूरोप में पुनर्जागरण लाने के लिए अग्रदूत का काम किया। इतिहासकारों ने लिखा है कि, “चर्च ज्ञान-विज्ञान का सबसे बड़ा दुश्मन था, अतः चर्च के इस आधिपत्य पर करारी चोट आ गई। अंधविश्वास पर टिकी हुई इस इमारत पर विज्ञान की तथ्यपूर्ण चोट जो यहां आश्रय लिए हुए विद्वानों ने की, जो सहन न कर सकी तथा भरभराकर घराशायी हो गई।”

कस्तुनतुनिया के पतन का एक और परिणाम निकला। यूरोप से पूर्वी देशों की तरफ जाने वाले स्थल मार्ग पर अब तुकों का अधिकार हो गया। ये लोग इस रास्ते से जाने वाले यूरोपियन व्यापारियों को लूट लेते थे परिणामस्वरूप पूर्वी देशों के साथ यूरोप का व्यापार ठप्प हो गया। परन्तु यूरोप में पूर्वी देशों में बनी वस्तुओं एवं मसालों की जबरदस्त माँग थी, इसलिए यूरोप वालों ने पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने के लिए नए समुद्री रास्तों की खोज की। इसी के परिणामस्वरूप अमेरिका व भारत आदि देशों का जल मार्ग खोजा जा सका। व्यापार के नए रास्तों की खोज ने पुरण लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

6. भौगोलिक खोजें (Geographical Discoveries): यूरोप के पुनरुत्थान एवं विकास में भौगोलिक खोजों का भी बड़ा हाथ रहा। कस्तुनतुनिया पर मुसलमानों का अधिकार हो जाने के कारण नए समुद्री मार्गों की खोज शुरू हुई। भौगोलिक खोजों का श्रीगणेश यूरोप के छोटे से देश पुर्तगाल द्वारा किया गया। पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी (1394-1460 ई.) ने जिसे ‘हेनरी दी नेवीगेटर का जाता था, ने समुद्री यात्राओं को प्रोत्साहित किया। नायिकों को शिक्षित करने के लिए उसने एक शिक्षण केन्द्र की स्थापन भी की। उसके शासन काल में अफ्रीका के पश्चिमी तट को खोजने का प्रयास किया गया। 1486 ई. में कप्तान बारबोलोमज डाइ ने अफ्रीका के दक्षिणी भाग की खोज की जो कप आफ गुड होप (Cape of Good Hope) के नाम से प्रसिद्ध हुआ|

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