मदर टेरेसा जीवन परिचय व अनमोल वचन ( Mother Teresa biography and Quotes in hindi)

कहते है दुनिया में अपने लिए तो सब जीते है, लेकिन जो अपने स्वार्थ को पीछे छोड़ दूसरों के लिए कार्य करता है, वही महान कहलाता है. ऐसों व्यक्तियों का पूरा जीवन प्रेरणादायक होता है, इन्हें मरने के बाद भी लोग दिल से याद करते है. ऐसीं हीं एक महान हस्ती का नाम है मदर टेरेसा. दया, निस्वार्थ भाव, प्रेम की मूर्ती मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन दूसरों की सेवा में न्योछावर कर दिया. मदर टेरेसा के अंदर अपार प्रेम था, जो किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं बल्कि हर उस इन्सान के लिए था, जो गरीब, लाचार, बीमार, जीवन में अकेला था. 18 साल की उम्र से ही नन बनकर उन्होंने अपने जीवन को एक नयी दिशा दे दी. मदर टेरेसा भारत की नहीं थी, लेकिन जब वे भारत पहली बार आई तो यहाँ के लोगों से प्रेम कर बैठी, और यही अपना जीवन बिताने का निर्णय लिया. उन्होंने भारत के लिए अभूतपूर्व कार्य किये|

मदर टेरेसा प्रारंभिक जीवन व परिवार

क्रमांकजीवन परिचय बिंदु मदर टेरेसा जीवन परिचय
1.पूरा नामअगनेस गोंझा बोयाजिजू
2.जन्म26 अगस्त 1910
3.जन्म स्थानस्कॉप्जे शहर, मसेदोनिया
4.माता – पिताद्रना बोयाजू – निकोला बोयाजू
5.मृत्यु5 सितम्बर 1997
6.भाई बहन1 भाई 1 बहन
7.धर्मकैथलिक
8.कार्यमिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को हुआ था, इनका नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू (Agnes Gonxha Bojaxhiu) था. इनके पिता एक व्यवसायी थी, जो काफी धार्मिक भी थे, वे हमेशा अपने घर के पास वाले चर्च जाया करते थे, और येशु के अनुयायी थे. 1919 इनकी मौत हो गई, जिसके बाद मदर टेरेसा को उनकी माता ने बड़ा किया था. पिता के जाने के बाद मदर टेरेसा के परिवार को आर्थिक परेशानी से गुजरना पड़ा. लेकिन उनकी माता ने उनको बचपन से ही मिल बाँट कर खाने की शिक्षा दी. उनकी माता कहती थी, जो कुछ भी मिले उसे सबके साथ बाँट कर खाओ. कोमल मन की मदर टेरेसा अपनी माँ से पूछती वे कौन लोग है, किनके साथ हम मिल बाँट कर खाएं? तब उनकी माता कहती कभी हमारे रिश्तेदार तो कभी वे सभी लोग जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरुरत है.  माता की ये बात अगनेस के कोमल मन में घर कई गई, और उन्होंने इसे अपने जीवन में उतारा. इसी के चलते वे आगे चलकर मदर टेरेसा बन गई|

अगनेस ने अपनी स्कूल की पढाई भी पूरी की. अगनेस (मदर टेरेसा) सुरीली आवाज की भी धनी थी. वे चर्च में अपनी माँ व बहन के साथ येशु की महिमा के गाने गाया करती थी. 12 साल की उम्र में वे अपने चर्च के साथ एक धार्मिक यात्रा में गई थी, जिसके बाद उनका मन बदल गया और उन्होंने क्राइस्ट को अपना मुक्तिदाता स्वीकार कर लिया, और येशु के वचन को दुनिया में फ़ैलाने का फैसला लिया. 1928 में 18 साल के होने पर अगनेस ने बपतिस्मा लिया और क्राइस्ट को अपना लिया. इसके बाद वे डबलिन में जाकर रहने लगी, इसके बाद वे वापस कभी अपने घर नहीं गई और न अपनी माँ व बहन को दोबारा देखा. नन बनने के बाद उनका नया जन्म हुआ और उन्हें सिस्टर मेरी टेरेसा नाम मिला. यहाँ के एक इंस्टीट्यूट से उन्होंने नन की ट्रेनिंग ली.

मदर टेरेसा का भारत आना व उनके द्वारा किये गए कार्य (Mother teresa service in India) –

1929 में मदर टेरेसा अपने इंस्टीट्यूट की बाकि नन के साथ मिशनरी के काम से भारत के दार्जिलिंग शहर आई. यहाँ उन्हें मिशनरी स्कूल में पढ़ाने के लिए भेजा गया था. मई 1931 में उन्होंने नन के रूप में प्रतिज्ञा ली. इसके बाद उन्हें भारत के कलकत्ता शहर भेजा गया. यहाँ उन्हें गरीब बंगाली लड़कियों को शिक्षा देने को कहा गया. डबलिन की सिस्टर लोरेटो द्वारा संत मैरी स्कूल की स्थापना की गई, जहाँ गरीब बच्चे पढ़ते थे. मदर टेरेसा को बंगाली व हिंदी दोनों भाषा का बहुत अच्छे से ज्ञान था, वे इतिहास व भूगोल बच्चों को पढ़ाया करती थी. कई सालों तक उन्होंने इस कार्य को पूरी लगन व निष्ठा से किया|

कलकत्ता में रहने के दौरान उन्होंने वहां की गरीबी, लोगों में फैलती बीमारी, लाचारी व अज्ञानता को करीब से देखा. ये सब बातें उनके मन में घर करने लगी और वे कुछ ऐसा करना चाहती थी, जिससे वे लोगों के काम आ सकें, लोगों की तकलीफ कम कर सकें. 1937 में उन्हें मदर की उपाधि से सम्मानित किया गया. 1944 में वे संत मैरी स्कूल की प्रिंसीपल बन गई.

एक नया बदलाव (How did mother teresa’s life change )–

10 सितम्बर 1946 को मदर टेरेसा को एक नया अनुभव हुआ, जिसके बाद उनकी ज़िन्दगी बदल गई. मदर टेरेसा के अनुसार – इस दिन वे कलकत्ता से दार्जिलिंग कुछ काम के लिए जा रही थी, तभी येशु ने उनसे बात की और कहा अध्यापन का काम छोड़कर कलकत्ता के गरीब, लाचार, बीमार लोगों की सेवा करो. लेकिन जब मदर टेरेसा ने आज्ञाकारिता का व्रत ले लिया था, तो वे बिना सरकारी अनुमति के कान्वेंट नहीं छोड़ सकती थी. जनवरी 1948 में उनको परमीशन मिल गई, जिसके बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया. इसके बाद मदर टेरेसा ने सफ़ेद रंग की नीली धारी वाली साडी को अपना लिया, और जीवन भर इसी में दिखाई दी. इन्होने बिहार के पटना से नर्सिंग की ट्रेनिंग ली, और वापस कलकत्ता आकर गरीब लोगों की सेवा में जुट गई. मदर टेरेसा ने अनाथ बच्चों के लिए एक आश्रम बनाया, उनकी मदद के लिए बाकि दुसरे चर्च भी हाथ आगे बढ़ाने लगे. इस काम को करते हुए उन्हें कई परेशानियाँ भी उठानी पड़ी. काम छोड़ने की वजह से उनके पास कोई आर्थिक मदद नहीं थी, उन्हें अपना पेट भरने के लिए भी लोगों के सामने हाथ फैलाना पड़ता था. लेकिन मदर टेरेसा इन सब बातों से घबरायी नहीं, उन्हें अपने प्रभु पर पूर्ण विश्वास था, उन्हें यकीन था कि जिस परमेश्वर ने उन्हें ये काम शुरू करने को बोला है, वो उसे पूरा भी करेगा|

मिशनरी ऑफ चैरिटी (Missionaries of charity history )–

7 अक्टूबर 1950 में मदर टेरेसा के अत्याधिक प्रयास के चलते उन्हें मिशनरी ऑफ़ चैरिटी बनाने की परमीशन मिल गई. इस संस्था में वोलीन्टर संत मैरी स्कूल के आध्यापक ही थे, जो सेवा भाव से इस संस्था से जुड़े थे. शुरुवात में इस संस्था में सिर्फ 12 लोग कार्य किया करते थे, आज यहाँ 4000 से भी ज्यादा नन काम कर रही है. इस संस्था के द्वारा अनाथालय, नर्सिंग होम, वृद्ध आश्रम बनाये गए. मिशनरी ऑफ़ चैरिटी का मुख्य उद्देश्य उन लोगों की मदद करना था, जिनका दुनिया में कोई नहीं है. उस समय कलकत्ता में प्लेग व कुष्ठ रोग की बीमारी अत्याधिक फैली हुई थी, मदर टेरेसा व उनकी संस्था ऐसे रोगियों की खुद सेवा किया करती थी, वे मरीजों के घाव को हाथ से साफ कर मरहम पट्टी किया करती थी.

 

कलकत्ता में उस समय छुआछूत की भी बीमारी बहुत फैली थी, गरीबों को समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था. मदर टेरेसा ऐसे सभी लोगों के लिए मसीहा बनकर सामने आई. वे गरीब, भूखों नंगों की सहायता   करती थी, उन्हें खाना खिलाती. 1965 में मदर टेरेसा ने रोम के पॉप जॉन पॉल 6 से अपनी मिशनरी को दुसरे देशों में फ़ैलाने की अनुमति मांगी. भारत के बाहर पहला मिशनरी ऑफ़ चैरिटी का संसथान वेनेजुएला में शुरू हुआ, आज के समय में 100 से ज्यादा देशों में  मिशनरी ऑफ़ चैरिटी संस्था है. मदर टेरेसा के कार्य किसी से छुपे नहीं थे, उनके निस्वार्थ भाव को स्वतंत्र भारत के सभी बड़े नेताओं ने करीब से देखा था, वे सभी उनकी सराहना भी करते थे.

 

मदर टेरेसा पर हुए विवाद (Mother teresa controversy) –

इस व्यापक प्रशंसा के बावजूद, मदर टेरेसा के जीवन और काम को विवादों के घेरे में ला खड़ा किया. कहते है सफलता जहाँ होती है, विवाद उसके पीछे पीछे चले आते है. मदर टेरेसा के इस निस्वार्थ भाव की दया व प्रेम को भी लोग गलत समझने लगे और उन पर आरोप लगाया गया कि वे भारत में लोगों का धर्म परिवर्तन करने की नियत से सेवा करती है. लोग उन्हें अच्छा इन्सान न समझकर, इसाई धर्म का प्रचारक समझते थे. इस सब बातों से उपर मदर टेरेसा अपने कामों की ओर ही ध्यान लगाती थी, लोगों की बातों में न ध्यान देते हुए उन्होंने अपने काम को ज्यादा तवच्चो दी.

 

मदर टेरेसा मृत्यु (Mother teresa death) –

मदर टेरेसा को कई सालों से दिल व किडनी की परेशानी थी. उन्हें पहला दिल का दौरा 1983 में रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मुलाकात के दौरान आया, इसके बाद दूसरी बार उन्हें 1989 में दिल का दौरा आया.  ख़राब तबियत के चलते भी वे अपने काम करती थी, और मिशनरी के सभी कामों से जुड़ी रही. 1997 में जब उनकी हालात बहुत बिगड़ती चली गई, और उन्हें इसका आभास हुआ तो उन्होंने मार्च 1997 को मिशनरी ऑफ़ चैरिटी के हेड का पद छोड़ दिया, जिसके बाद सिस्टर मैरी निर्मला जोशी को को इस पद के लिए चुना गया. 5 सितम्बर 1997 को मदर टेरेसा का कलकत्ता में देहांत हो गया.

मदर टेरेसा अवार्ड व अचीवमेंट (Mother teresa awards and achievements) –

1962 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया था .

1980 में भारत के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था .

1985 में अमेरिका सरकार द्वारा मैडल ऑफ़ फ्रीडम अवार्ड दिया था .

1979 में मदर टेरेसा को गरीब, बीमारों की मदद के लिए नोबल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था .

2003 में पॉप जॉन पोल ने मदर टेरेसा को धन्य कहा, उन्हें ब्लेस्ड टेरेसा ऑफ़ कलकत्ता कहकर सम्मानित किया था .

मदर टेरेसा अनमोल वचन (Mother teresa quotes ) –

मदर टेरेसा को 20 वीं सदी की सबसे बड़ी मानवतावादियों में से एक है. मदर टेरेसा कहती थी, वो नागरिक भारत की है, विश्वास से कैथलिक नन है, लेकिन उनका पूरा दिल प्रभु येशु का है, उन्होंने अपना पूरा जीवन पिता परमेश्वर और प्रभु येशु को समर्पित किया था. उनके पास हजारों लोग पहुँचते थे, जो किसी तरह की परेशानी से गुजर रहे होते है, मदर उनके लिए प्राथना किया करती थी, और सब ठीक हो जाता था. ऐसे कई चमत्कार को प्रभु येशु के नाम से मदर ने लोगों के लिए किया था. मदर टेरेसा जैसी हस्ती की जरुरत आज भी हमारे देश समाज को है, जो दूसरों से अपने जैसा प्यार करे, और उनके दुःख दर्द को अपना समझे. मदर टेरेसा दया, प्रेम की जीती जागती मूरत थी, इनके जीवन से हम बहुत सी बातें सिख सकते है. ये कई लोगों के लिए आदर्श है, जो इनके जैसा बनना चाहते है|

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