- अधिकतर पौधे उभयलिंगी होते हैं, जिसमें नर और मादा जननांग एक ही पौधों में पाए जाते हैं। पादपों का जननीय भाग पुष्प होता है। पुष्प के विभिन्न भाग होते हैं- बाह्यदल (Sepals), दल (पंखुडियां–Petals), पुंकेसर (Stamen), अंडप (Carpel).
- बाह्यदल प्राय: हरा तथा दल (Petals) रंगीन और शोभनीय होते हैं।
- पुंकेसर तथा अंडप, जनन भाग होते हैं। प्रत्येक पुंकेसर में एक वृंत (Stalk) होते हैं, जिसे तंतु (Filament) कहते हैं तथा एक चपटा शीर्ष जिसे परागकोष (Anther) कहते हैं, पाया जाता है। परागकणों (Pollen grains) की उत्पत्ति परागकोष में होती है। प्रत्येक परागकण से दो नर युग्मक बनते हैं।
- अंडप (Carpel) के तीन प्रमुख भाग होते हैं- नीचे का फूला हुआ भाग अंडाशय (Ovary) ऊपर वाला चपटा भाग वर्तिकाग्र (Stigma) तथा मध्य में लंबी वर्तिका (Style) होती है। अंडाशय (Ovary) में बीजांड (Ovules) होते हैं।
- प्रत्येक बीजांड में एक अंडा होता है जो मादा युग्मक है।
- पौधे में नर तथा मादा युग्मकों का संलयन तब होता है, जब परागकण उसी पुष्प या दूसरे पुष्प से स्थानांतरित होते हैं।
- परागण (Pollination)- परागकणों का परागकोष से वर्तिकाग्र तक के स्थानांतरण को परागण कहते हैं। परागकणों के स्थानांतरण के अनेक माध्यम हैं जैसे- वायु, जल कीट आदि।
- परागण दो प्रकार के होते हैं:
- स्वपरागण (Self poIIination): किसी पुष्प के परागकोष से उसी पुष्प के या उस पौधे के अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र तक परागकणों का स्थानांतरण स्वपरागण कहलाता है।
- पर-परगण (Cross pollination): एक पुष्प के परागकोष से उसी जाति के दूसरे पौधों के पुष्प के वर्तिकाग्र तक परागकणों का स्थानांतरण पर-परागण कहलाता है।
पौधों में निषेचन (Fertilisationin Plant)
- पौधों में परागण के बाद निषेचन होता है। जब परागकण वत्तिकाग्र में एकत्रित हो जाते हैं तब उनका अंकुरण होता है, उसमें से एक नली जो वर्त्तिका में प्रवेश करती है उसे परागनलिका (Pollen tube) कहते हैं। यह नलिका वर्तिका से होते हुए, बढ़कर अण्डाशय तक पहुंचती है, जहाँ बीजांड स्थित होता है। पराग नलिका एक सूक्ष्म छिद्र द्वारा बीजांड में प्रवेश करती है जिसे बीजांड द्वार (Micropyle) कहते हैं। बीजांड क अंदर परागनलिका से दो पुंयुग्मक (Pollengrains) भ्रूणकोष में प्रवेश करते हैं। भ्रूणकोष में अंड रहता है। एक पुंयुग्मक का अंड से संलयन होता है। नर और मादा युग्मको का यह संलयन, युग्मक संलयन (Syngamy) कहलाता है तथा इससे युग्मनज बनाता है।
- अन्य पुंयुग्मक का दो ध्रुवीय केन्द्रकों से संलयन होता है। इस क्रिया को त्रिसंलयन (Triple fission) कहते हैं, क्योंकि इस संलयन क्रिया में तीन केन्द्रक होते हैं, एक पुंयुग्मक तथा दो ध्रुवीय केन्द्रक। इससे भ्रूणकोष बनता है जो बीज को अंकुरण तक भोजन (पोषण) प्रदान करता है।
- प्रत्येक भ्रूणकोष में दो संलयन; युग्मक संलयन तथा त्रिसंलयन होने की क्रिया को दोहरा निषेचन (Double fertilization) कहते हैं। निषेचन के बाद अंडाशय फल में तथा बीजांड बीजों में विकसित हो जाते हैं।
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