जन्मदिन विशेष : संविधान अच्छे हाथों में रहा तो अच्छा, बुरे हाथ के गया तो खराब साबित होगा : विनोद कुमार की कलम से

आज हम अपनी राजनीति में नियमों, नीतियों ,सिद्धांतों, नैतिकताओं उसूलों व चारित्र के जिन संकटों से दो-चार है, उनके अंदेश भीमराव आंबेडकर के तभी भाँप लिए थे |

 

बाबा साहब डॉ० भीमराव आंबेडकर द्वारा की गई देश ब समाज की सेवाओं के यूं तो अनेक आयाम है लेकिन संविधान निर्माण के वक्त उसकी प्रारूप समिति की के अध्यक्ष के तौर पर निभाई गई जिस भूमिका में उन्हें संविधान निर्माता बना दिया, वह इस अर्थ में अनमोल है कि आज हम अपनी राजनीति में नियमों, नीतियों, सिद्धांतों, नैतिकताओं ,उसूलों व चरित्र के जिन संकटों से दो चार है उनके अंदेशे उन्होंने तभी भाँप लिए थे |

 

तभी उन्होंने संविधान लागू होने से पहले और उसके बाद इनको लेकर कई आशंकायें  जताई  और आगाह किया था, कि ये संकेट ऐसे ही बढ़ते गए तो न सिर्फ संविधान बल्कि आजादी को भी तहस-नहस कर सकते हैं। 

दुख की बात यह है कि तब किसी ने भी उनकी आशंकाओं पर गंभीरता नहीं दिखाई।

 

उन्हें नजरंदाज करने वालों से तो इसकी अपेक्षा ही नहीं की जा सकती थी, लेकिन उन्हें पूजने की प्रतिमा बना देने वालों ने भी संकटों के समाधान के लिए सारे देशवासियों में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता बढ़ाने वाली बंधुता  सुनिश्चित करने के उनके सुझाए रास्ते पर चलने की जहमत नहीं उठाई. इसलिए आज कई बार हमें उनके पार जाने का रास्ता ही नहीं दिखता। गौरतलब है कि संविधान के अंगीकृत , आत्मार्पित  होने से  पहले 25 नवंबर 1949 को उन्होंने उसे अपने सपनों का अथवा तीन लोक से प्यारा मानने से इनकार करके उसकी सीमाएं रेखांकित कर दी थी।

 

विधीमंत्री के तौर पर अपने पहले ही साक्षत्कार में उन्होंने कहा था कि यह संविधान अच्छे लोगों के हाथ में रहेगा तो अच्छी सिद्ध होगा, लेकिन बुरे हाथों में चला गया तो इस हद तक ना उम्मीद कर देगा कि किसी के लिए कभी भी नहीं नजर आऐगा

उनके शब्द थे “मैं महसूस करता हूं कि संविधान चाहे कितना  भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाये, अच्छे हों तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा ||

उन्होंने चेताया था कि ‘संविधान पर अमल केवल संविधान के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता, संविधान केवल  विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे राज्य के अंगो का प्रावधान कर सकता है। उन अंगों का संचालन लोगों पर तथा उनके द्वारा अपनी आकांक्षाओं तथा अपनी राजनीति की पूर्ति के लिए बनाये जाने वाले राजनीतिक दलों पर निर्भर करता है।

फिर उन्होंने जैसे खुद से सवाल किया था कि आज की तारीख में, जब हमारा सामाजिक मानस अलोकतांत्रिक है, और राज्य की प्रणाली लोकतांत्रिक, कौन कह सकता है कि भारत के लोगों तथा राजनीतिक दलों का भविष्य का व्यवहार कैसा होगा? वे साफ देख रहे थे कि आगे चलकर लोकतन्त्र से हासिल सहूलियतों का लाभ उठाकर विभिन्न तथा परस्पर  विरोधी विचारधाराएं रखने वाले राजनीतिक दल बन जायेंगे जिनमें से कई जातियों व संप्रदायों के हमारे पुराने शत्रुओं के साथ मिलकर कोढ़ में खाज पैदा कर सकते हैं |

 

उनके निकट इसका सबसे अच्छा समाधान यह था कि सारे भारतवासी देश को अपने पंथ से ऊपर रखें, न कि पंथ को देश से ऊपर। लेकिन ऐसा होने को लेकर वे  आश्वस्त नहीं थे, इसलिए अपने आप को यह कहने से रोक नहीं पाये थे। यदि राजनीतिक दल अपने पंथ को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता एक बार फिर खतरे में पड़ आयेगी | संभवतया हमेशा के लिए खतम  हो जाए | हम सभी को इस संभाव्य घटना का दृढ निश्चय के साथ प्रतिकार करना चाहिए। हमें अपनी आजादी की खून के आखिरी कतरे के सुरक्षा करने का संकल्प करना चाहिए।

 

उनके अनुसार संविधान लागू होने के साथ ही हम अंतर्विरोधों के नया युग में प्रवेश कर गए थे और उस उसका सबसे बड़ा अंतर्विरोध था कि वह एक ऐसे देश में लागू हो रहा था, जिसे उसकी मार्फत नागरिकों की राजनीतिक समता का उद्‌द्देश्य तो प्राप्त होने जा रहा  था, लेकिन आर्थिक व सामाजिक समता कहीं दूर भी दिखाई नहीं दे रही थी।

 

उन्होंने  नवनिर्मित  संविधान को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के हाथों में दिया तो आग्रह किया था कि वे जिंतनी जल्दी संभव हो नागरिकों क़े बीच आर्थिक व सामाजिक समता लाने के जतन करें क्योंकि इस अंतर्विरोध की उम्र लम्बी होने पर उन्हें देश में उस लोकतन्त्र के ही विकल हो जाने का अंदेशा सता रहा था। जिसके तहत ‘एक व्यक्ति एक वोट’ की व्यवस्था को हर संभव समानता तक ले जाना थी

 

उनके कथनों के आईने में देखें तो आज हम पाते हैं  की संविधान का अनुपालन कराने की शक्ति ऐसी राजनीति के हाथ में चली गई जिसका खुद का लोकतन्त्र मैं विश्वास असंदिग्ध नहीं है और जो लोकतंत्र की सारी संहूलियतो को अपने आप कर लोकतन्त्र  के  खात्मे के लिए इस्तेमाल कर रही है।

 

संविधान भी उसके निकट कोई जीवन दर्शन या आचार संहिता न होकर महज अपनी सुविधा का नाम है। इसलिए तो संविधान के स्वतंत्रता समता, न्याय और बंधुता जैसे उदात मूल्यों से निर्ममतापूर्वक खेल किए जा रहे हैं। और सामाजिक आर्थिक समता लाने के उनके आग्रह के उलट सताओं का सारा जोर जातीय गोलबंदियों को मजबूत करने,   आर्थिक संकेंद्रण और विषमता बढ़ाने पर है। यह तब है जब बाबा  साहब मूल उद्योगों को सरकारी नियंत्रण में और निजी पूंजी को समता के बंधन में कैद रखना चाहते थे। ताकि आर्थिक संसाधनो का ऐसा अहितकारी संकेंद्रण कतई नहीं हो, जिससे नागरिकों का कोई समूह लगातार शक्तिशाली और कोई समूह लगातार निर्बल होता जाए।  

 

संविधान के रूप में बाबा साहब की जो सबसे बड़ी थाती हमारे पास है, उसे व्यर्थ कर डालने का इससे बड़ा षड्‌यंत्र भला और क्या होगा कि उसकी प्रस्तावना में देश को संपूर्ण प्रभुत्वसमान्य, समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक, गणराज्य बनाने का संकल्प वर्णित है, लेकिन हमारी चुनी हुई सरकारों ने देश पर थोप दी गई नव उदारवादी पूंजीवादी नीतियों को इस संकल्प का विकल्प बना डाला है।

 

संविधान की आत्मा को मार देने के उद्देश्य से वे बार-बार उसकी समीक्षा का प्रश्न उछालती हैं, तो उनकी शह प्राप्त विभिन्न विरोधी सताएं उसके अतिक्रमण पर उतरी रहती है। यह अतिक्रमण मुमकिन नहीं होता अगर बाबासाहब की भारतीयता की यह अवधारणा स्वीकार कर ली गई होती कुछ लोग कहते हैं कि हम पहले भारतीय हैं, बाद में हिंदू या मुसलमान मुझे यह स्वीकार नहीं है मैं चाहता हूं कि लोग पहले भी भारतीय हो और अंत  तक भारतीय रहें |

जन्मदिन विशेष : संविधान अच्छे हाथों में रहा तो अच्छा, बुरे हाथ के गया तो खराब साबित होगा : विनोद कुमार की कलम से |

 

आज हम अपनी राजनीति में नियमों, नीतियों ,सिद्धांतों, नैतिकताओं उसूलों व चारित्र के जिन संकटों से दो-चार है, उनके अंदेश भीमराव आंबेडकर के तभी भाँप लिए थे |

 

बाबा साहब डॉ० भीमराव आंबेडकर द्वारा की गई देश ब समाज की सेवाओं के यूं तो अनेक आयाम है लेकिन संविधान निर्माण के वक्त उसकी प्रारूप समिति की के अध्यक्ष के तौर पर निभाई गई जिस भूमिका में उन्हें संविधान निर्माता बना दिया, वह इस अर्थ में अनमोल है कि आज हम अपनी राजनीति में नियमों, नीतियों, सिद्धांतों, नैतिकताओं ,उसूलों व चरित्र के जिन संकटों से दो चार है उनके अंदेशे उन्होंने तभी भाँप लिए थे |

 

तभी उन्होंने संविधान लागू होने से पहले और उसके बाद इनको लेकर कई आशंकायें  जताई  और आगाह किया था, कि ये संकेट ऐसे ही बढ़ते गए तो न सिर्फ संविधान बल्कि आजादी को भी तहस-नहस कर सकते हैं। 

दुख की बात यह है कि तब किसी ने भी उनकी आशंकाओं पर गंभीरता नहीं दिखाई।

 

उन्हें नजरंदाज करने वालों से तो इसकी अपेक्षा ही नहीं की जा सकती थी, लेकिन उन्हें पूजने की प्रतिमा बना देने वालों ने भी संकटों के समाधान के लिए सारे देशवासियों में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता बढ़ाने वाली बंधुता  सुनिश्चित करने के उनके सुझाए रास्ते पर चलने की जहमत नहीं उठाई. इसलिए आज कई बार हमें उनके पार जाने का रास्ता ही नहीं दिखता। गौरतलब है कि संविधान के अंगीकृत , आत्मार्पित  होने से  पहले 25 नवंबर 1949 को उन्होंने उसे अपने सपनों का अथवा तीन लोक से प्यारा मानने से इनकार करके उसकी सीमाएं रेखांकित कर दी थी।

 

विधीमंत्री के तौर पर अपने पहले ही साक्षत्कार में उन्होंने कहा था कि यह संविधान अच्छे लोगों के हाथ में रहेगा तो अच्छी सिद्ध होगा, लेकिन बुरे हाथों में चला गया तो इस हद तक ना उम्मीद कर देगा कि किसी के लिए कभी भी नहीं नजर आऐगा

उनके शब्द थे “मैं महसूस करता हूं कि संविधान चाहे कितना  भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाये, अच्छे हों तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा ||

उन्होंने चेताया था कि ‘संविधान पर अमल केवल संविधान के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता, संविधान केवल  विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे राज्य के अंगो का प्रावधान कर सकता है। उन अंगों का संचालन लोगों पर तथा उनके द्वारा अपनी आकांक्षाओं तथा अपनी राजनीति की पूर्ति के लिए बनाये जाने वाले राजनीतिक दलों पर निर्भर करता है।

फिर उन्होंने जैसे खुद से सवाल किया था कि आज की तारीख में, जब हमारा सामाजिक मानस अलोकतांत्रिक है, और राज्य की प्रणाली लोकतांत्रिक, कौन कह सकता है कि भारत के लोगों तथा राजनीतिक दलों का भविष्य का व्यवहार कैसा होगा? वे साफ देख रहे थे कि आगे चलकर लोकतन्त्र से हासिल सहूलियतों का लाभ उठाकर विभिन्न तथा परस्पर  विरोधी विचारधाराएं रखने वाले राजनीतिक दल बन जायेंगे जिनमें से कई जातियों व संप्रदायों के हमारे पुराने शत्रुओं के साथ मिलकर कोढ़ में खाज पैदा कर सकते हैं |

 

उनके निकट इसका सबसे अच्छा समाधान यह था कि सारे भारतवासी देश को अपने पंथ से ऊपर रखें, न कि पंथ को देश से ऊपर। लेकिन ऐसा होने को लेकर वे  आश्वस्त नहीं थे, इसलिए अपने आप को यह कहने से रोक नहीं पाये थे। यदि राजनीतिक दल अपने पंथ को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता एक बार फिर खतरे में पड़ आयेगी | संभवतया हमेशा के लिए खतम  हो जाए | हम सभी को इस संभाव्य घटना का दृढ निश्चय के साथ प्रतिकार करना चाहिए। हमें अपनी आजादी की खून के आखिरी कतरे के सुरक्षा करने का संकल्प करना चाहिए।

 

उनके अनुसार संविधान लागू होने के साथ ही हम अंतर्विरोधों के नया युग में प्रवेश कर गए थे और उस उसका सबसे बड़ा अंतर्विरोध था कि वह एक ऐसे देश में लागू हो रहा था, जिसे उसकी मार्फत नागरिकों की राजनीतिक समता का उद्‌द्देश्य तो प्राप्त होने जा रहा  था, लेकिन आर्थिक व सामाजिक समता कहीं दूर भी दिखाई नहीं दे रही थी।

 

उन्होंने  नवनिर्मित  संविधान को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के हाथों में दिया तो आग्रह किया था कि वे जिंतनी जल्दी संभव हो नागरिकों क़े बीच आर्थिक व सामाजिक समता लाने के जतन करें क्योंकि इस अंतर्विरोध की उम्र लम्बी होने पर उन्हें देश में उस लोकतन्त्र के ही विकल हो जाने का अंदेशा सता रहा था। जिसके तहत ‘एक व्यक्ति एक वोट’ की व्यवस्था को हर संभव समानता तक ले जाना थी

 

उनके कथनों के आईने में देखें तो आज हम पाते हैं  की संविधान का अनुपालन कराने की शक्ति ऐसी राजनीति के हाथ में चली गई जिसका खुद का लोकतन्त्र मैं विश्वास असंदिग्ध नहीं है और जो लोकतंत्र की सारी संहूलियतो को अपने आप कर लोकतन्त्र  के  खात्मे के लिए इस्तेमाल कर रही है।

 

संविधान भी उसके निकट कोई जीवन दर्शन या आचार संहिता न होकर महज अपनी सुविधा का नाम है। इसलिए तो संविधान के स्वतंत्रता समता, न्याय और बंधुता जैसे उदात मूल्यों से निर्ममतापूर्वक खेल किए जा रहे हैं। और सामाजिक आर्थिक समता लाने के उनके आग्रह के उलट सताओं का सारा जोर जातीय गोलबंदियों को मजबूत करने,   आर्थिक संकेंद्रण और विषमता बढ़ाने पर है। यह तब है जब बाबा  साहब मूल उद्योगों को सरकारी नियंत्रण में और निजी पूंजी को समता के बंधन में कैद रखना चाहते थे। ताकि आर्थिक संसाधनो का ऐसा अहितकारी संकेंद्रण कतई नहीं हो, जिससे नागरिकों का कोई समूह लगातार शक्तिशाली और कोई समूह लगातार निर्बल होता जाए।  

 

संविधान के रूप में बाबा साहब की जो सबसे बड़ी थाती हमारे पास है, उसे व्यर्थ कर डालने का इससे बड़ा षड्‌यंत्र भला और क्या होगा कि उसकी प्रस्तावना में देश को संपूर्ण प्रभुत्वसमान्य, समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक, गणराज्य बनाने का संकल्प वर्णित है, लेकिन हमारी चुनी हुई सरकारों ने देश पर थोप दी गई नव उदारवादी पूंजीवादी नीतियों को इस संकल्प का विकल्प बना डाला है।

 

संविधान की आत्मा को मार देने के उद्देश्य से वे बार-बार उसकी समीक्षा का प्रश्न उछालती हैं, तो उनकी शह प्राप्त विभिन्न विरोधी सताएं उसके अतिक्रमण पर उतरी रहती है। यह अतिक्रमण मुमकिन नहीं होता अगर बाबासाहब की भारतीयता की यह अवधारणा स्वीकार कर ली गई होती कुछ लोग कहते हैं कि हम पहले भारतीय हैं, बाद में हिंदू या मुसलमान मुझे यह स्वीकार नहीं है मैं चाहता हूं कि लोग पहले भी भारतीय हो और अंत  तक भारतीय रहें |

 

Vinod Jand Hanzira

2nd ग्रेड एवं reet के फ्री mocktest के लिए ग्रुप ज्वाइन करें ||

Please Share Via ....

19 thoughts on “जन्मदिन विशेष : संविधान अच्छे हाथों में रहा तो अच्छा, बुरे हाथ के गया तो खराब साबित होगा : विनोद कुमार की कलम से

  1. 0.00€ bezmaksas piegāde lietojot DPD Pickup, ja summa ir lielāka par 100.00€. Currently listed in order of the newest arrivals, feel free to use the ‘sort-by’ feature to adjust your preference. Or the magnifying glass in the top right corner to search for something specific like “chorus” or “chase bliss”. It’s a Bigsby… in a pedal (and more) Brand: Gamechanger Audio A few weeks ago, our Latvian friends at GameChanger Audio kindly sent us the LIGHT pedal for review. To be honest, I only knew that it was a glorified spring reverb pedal with some crazy technology behind it but as I did more research, I was blown away by this project and as I was playing sounds through it I loved it even more. You can check out the pedal on Gamechanger Audio’s website here. Its listing price is $379. The demo is available below:
    http://hallaomegi.co.kr/bbs/board.php?bo_table=free&wr_id=5685
    Beyond the Campaign, Cold War brings an arsenal of weapons and equipment into the next generation of Multiplayer and Zombies experiences. As an elite operative, follow the trail of a shadowy figure on a mission to destabilize the global balance of power and change the course of history. Descend into the dark center of a global conspiracy alongside iconic characters Woods, Mason and Hudson, as well as a new cast of operatives attempting to stop a plot decades in the making. Black Ops Cold War elevates the classic Black Ops multiplayer feel with a new take on gunsmith, new and fan favorite scorestreaks, new maps, new modes and a host of new characters to play as. Black Ops Cold War Zombies is set to take veterans and newcomers alike on a bold and terrifying journey that expands on an iconic part of the Call of Duty franchise. This co-op mode includes new ways to progress, classic Perks, and an arsenal of Cold War-era Zombies weaponry that will help survivors dominate the legions of undead.

  2. All new players are able to claim an impressive 100% to $747 on their first two deposits (slots bonus). Should slots not be your game, they also offer an alternative welcome offer for all other games. On arriving at the site, you are treated to a short video that further projects the atmosphere and the game types offered by Manhattan Slots. ** Valid for DEPOSITORS In total, there is one Manhattan Slots Casino bonus package that can give you more money! There are many different promotion options at Manhattan Slots Casino. You can also visit New York Slots Casino website that are offering a new offer. Because of wagering requirements, you cannot withdraw your bonus funds and winnings before wagering a certain amount of money. This deposit bonus from Manhattan Slots Casino has wagering requirements of 50x the value of your bonus and deposit. If you deposit $100, for example, and get a match bonus worth $100, you will have to place bets worth $10,000 in total be allowed to withdraw your bonus funds and winnings.
    http://www.shop-kt.net/bbs/board.php?bo_table=free&wr_id=110266
    PS. to get a better idea about what i’m talking about check out the replay of Thursday Thrill (Feb, 16th) – youtu.be K4UIrgpKHEE While presenting those and other characters Alvarez artfully addresses larger themes as well as including societal attitudes toward poker and gambling, the romance of poker and how it clashes with the reality. He explores how full-time players train themselves to think of poker as “work” (instead of “play”), how in poker money can somehow simultaneously mean everything and nothing, and the oddly-independent subculture of poker players and how the game provides some a kind of escape from the “straight world” or “system”. Quiere ver a «su chico» ser uno de los inducidos al Poker Hall of Fame de este año y mostró su extenso CV en las redes sociales.

  3. I believe everything typed was actually very reasonable.
    However, what about this? suppose you wrote a catchier title?

    I am not suggesting your content isn’t good, however what
    if you added a headline to maybe grab people’s attention? I mean जन्मदिन विशेष :
    संविधान अच्छे हाथों में रहा
    तो अच्छा, बुरे हाथ के गया तो खराब
    साबित होगा : विनोद कुमार की कलम से » समर्पण एजुकेशन is a little boring.
    You might peek at Yahoo’s home page and note how they
    create post titles to get people to click. You might add a related video or
    a pic or two to get readers excited about what you’ve written. In my opinion, it might
    bring your blog a little livelier.

  4. With the coming of Ethereum Shanghai upgrade, some investors worry that opening staking withrdawals will put selling pressure on ETH. More recently, in April, a poll of 32 fintech and crypto experts projected that the price of Ethereum could reach its peak in 2023 at around $2,758. However, after that, they expect the price to start dropping again in the second half of 2023, sinking to the still bullish $2,342 by the end of the year. Since its launch, Ethereum (ETH) has evolved – constantly improving aspects of its network to accommodate better scalability, security, and adoption. Within Gasper, Casper is responsible for upgrading certain blocks to “finalized” so that new participants in the network can be confident that they are syncing the canonical chain. Finality refers to the state where a block on the blockchain cannot be reverted or changed without a consensus failure or a significant attack on the staked ether. Once a block is finalized, it is considered permanent information on the blockchain. The finality of a block on Ethereum is achieved through a two-step upgrade procedure that helps to ensure its certainty and validity. LMD-GHOST stands for “latest message-driven greedy heaviest observed sub-tree”. Validators assess each block using this rule before adding the heaviest block to its canonical chain.
    https://raymondmibt136803.webdesign96.com/25051711/manual-article-review-is-required-for-this-article
    The second halving event (Block 420,000) occurred on July 9, 2016, reducing mining rewards from 25 to 12.5. This was when new exchanges like Coinbase, Bitstamp, and Kraken were establishing themselves in the market, and businesses like Overstock, Expedia, and Microsoft started accepting Bitcoin as a payment method. Bitcoin ATMs were beginning to appear in cities worldwide. The second halving, eagerly anticipated in the crypto community, took place on July 9. By the time the 420,000th block was mined, the Bitcoin block reward had been halved again to 12.5 BTC. Bitcoin was trading at $650.96 at that time. Following a short-term retreat, the price of one bitcoin reached an all-time high of $20,089 after 526 days after the halving event. Bitcoin underwent its last halving on 11 May 2020, when mining rewards decreased by 50%, from 12.5 new bitcoin per block to 6.25 bitcoin. The coin’s price rose from $6877.62 on April 11 (one month prior to the halving) to $8821 at the time of the event as a result of the restricting supply. The price continued to rise over the course of the following year, reaching $49504 on 11 May 2021 despite significant volatility.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *