सुभाष चन्द्र बोस
1897–1945: बंगाल के प्रमुख भारतीय राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी
सुभाष चन्द्र बोस एक बंगाल से सबसे बड़े नेता थे, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इंडियन नेशनल आर्मी (Indian National Army – INA) का जापान के सहयोग से गठन किया था, जिसमे उन्हें नेताजी कहा जाता था। बोस का जन्म कटक, उड़ीसा में हुआ था। बचपन से ही मेधावी रहे बोस ने 16 वर्ष की उम्र में कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज (Presidency College) में दाखिला लिया। यहाँ से ही उन्होंने, एक नस्लवादी अंग्रेजी शिक्षक के खिलाफ, छात्रों के साथ के साथ विरोध करके अपने क्तान्तिकारी जीवन की शुरुआत की। परिणामस्वरूप बोस को इस कालेज से निलंबित कर दिया गया, बाद में उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से अपनी शिक्षा पूर्ण की। 1919 में बोस के पिता जानकीनाथ बोस ने उन्हें लंदन भेजने का फैसला किया, जहाँ उन्होंने लैटिन सीखी और भारतीय सिविल सेवा परीक्षा (Indian Civil Service examinations) भी उत्तीर्ण की, इसी समय महात्मा गाँधी ने भी ब्रिटिश राज के खिलाफ अपना सत्याग्रह शुरू किया। बोस ने तत्कालीन ब्रिटिश सेवा में शामिल होने की अपनी महत्वाकांक्षा का परित्याग करने, और ब्रिटिश शासन के लिए नौकरी करने के बजाय गांधी के क्रांतिकारी विरोध में शामिल होने का फैसला किया। पर 1921 में बोस गाँधी के आंदलनों और उसके अस्पष्ट उद्देश्यों और साथ ही राष्ट्रीय विरोध में सभी प्रकार की हिंसा से बचने के बारे में भी चिंतित भी थे। सिविल सर्विस से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने ‘स्वराज’नामक समाचार पत्र शुरू किया, चितरंजन दास उस समय बंगाल में राष्ट्रवादी आंदोलन के अगुवा थे। 1923 में बोस ऑल इंडिया यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष और बंगाल राज्य कांग्रेस के सचिव भी चुने गये। वह चितरंजन दास द्वारा शुरू किये गये ‘फॉरवर्ड’समाचार पत्र के संपादक भी थे।
बोस कलकत्ता लौट आये, और उन्होंने 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स के खिलाफ एक छात्र बहिष्कार का आयोजन किया। यहाँ उन्होंने बंगाल के महान “राष्ट्र संघटनकर्ता (nation-unifier)” देशबंधु चितरंजन दास (Deshabandhu Chitta Ranjan Das) के साथ काम किया, जो बोस के राजनीतिक गुरु भी बने। दास जब कलकत्ता के मेयर चुने गए तो उन्होंने बोस को अपना मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनाया और दोनों ने मिलकर कलकत्ता की झुग्गी बस्तियों को साफ करने का काम शुरू किया। बोस पर आतंकवादियों को सहायता देने को आरोप लगाते हुए उन्हें मांडले जेल भेज दिया गया। 1927 में वह लोकप्रिय नायक बन कर कलकत्ता वापस लौटे, और बंगाल के प्रांतीय कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षता के लिए निर्वाचित हुए। एक दशक बाद बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए। महात्मा गांधी, कांग्रेस कार्य समिति के रूढ़िवादी सदस्यों के बहुमत के साथ बोस को उनके अध्यक्षीय वर्ष समाप्त होने के बाद उनके पद से हटाना चाहते थे, परन्तु बोस अपने लक्ष्यों की समीक्षा करने लिए एक और वर्ष काम करना चाहते थे। गांधीजी ने पट्टाभि सीतारमैय्या का नाम अध्यक्ष पद के लिए चुना, लेकिन रवींद्रनाथ टैगोर, वैज्ञानिक प्रफुल्लचंद्र राय और मेघनाद साहा बोस को ही फिर से अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते थे। तब बोस ने अपने समर्थकों के आग्रह पर 1939 में त्रिपुरा में होने वाले राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का फैसला किया। ऐसा 1885 में कांग्रेस बनने के बाद उसके इतिहास में पहली बार होने जा रहा था और बोस चुनाव जीत भी गए। गाँधी के मूक विरोध के समर्थन के साथ ही कांग्रेस कार्यकारिणी के 14 सदस्यों में से 12 ने इस्तीफा दे दिया। तब बोस ने अपने स्वास्थ्य और इस थकाऊ संघर्ष को देखते हुए स्वयं ही पद त्याग करने का फैसला किया।
बोस, 1930 के दशक के दौरान पश्चिमी यूरोप में कई वर्षों तक रहे और इस दौरान समाजवाद और साम्यवाद के आदर्शों ने बोस को आकर्षित किया। बोस फासीवाद और नाज़ीवाद (fascism and Nazism) को वरीयता देते थे। उनके विचारों में बोस, भारतीय दर्शन को मानवीयकरण के साथ मिश्रित करके, भारतीय समाजवाद को मजबूत करना एवं गरीबी, जाति और वर्ग की विषमताओं को खत्म करना चाहते थे। बोस की फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी (Forward Bloc Party), जिसे उन्होंने अपने भाई शरत चन्द्र बोस के साथ मिलकर बनायीं थी, बंगाल में बहुत ही लोकप्रिय थी, परन्तु द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के बह बोस के भाइयों को कलकत्ता में घर में नजरबंद कर दिया गया, परन्तु सुभाष भाग निकले और अफगानिस्तान पहुँच गए। यहाँ से उन्होंने बर्लिन के लिए उड़न भरी, जहाँ बोस ने एडॉल्फ हिटलर (Adolf Hitler) से मुलाकात की, और हिटलर द्वारा दी गयी ‘नेताजी (Leader)’ की उपाधि स्वीकार की। हिटलर को, बोस में भारत के भविष्य की आशा थी। बोस ने हिंदी और बंगाली में रोज प्रसारण किया, और देशवासियों से अपील की, कि वे ब्रिटिश अत्याचार के खिलाफ विद्रोह का दें क्योंकि मित्र राष्ट्र (Allies) जल्द ही युद्ध हार जायेंगे और धुरी राष्ट्रों (Axis powers) की विजय होगी।
जब सिंगापूर पर जापान ने 1942 में कब्ज़ा कर लिया, तब लगभग 60,000 भारतीय सैनिकों ने बिना किसी विरोध के उनके सामने आत्म समर्पण कर दिया, तब नाजियों ने निश्चय किया कि बोस उनके लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं, जो उस समय जर्मनी में ही थे। बोस को एक पनडुब्बी द्वारा 1943 में हैम्बर्ग (Hamburg) से केप ऑफ़ गुड होप (Cape of Good Hope) होते हुए जब वह सिंगापुर पहुंचे, तो जापान ने भारतीय सैनिकों की कमान बोस को सौंप दी, जो इंडियन नेशनल आर्मी में शामिल होना चाहते थे। अक्टूबर 1943 में नेताजी ने आजाद भारत की अंतरिम सरकार का गठन किया। इस सरकार को जर्मनी, जापान, फिलिपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, और आयरलैंड आदि देशों ने मान्यता दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को सौंप दिये और सुभाष ने उन द्वीपों का नया नामकरण “शहीद द्वीप” और “स्वराज द्वीप” किया। यहाँ से उनकी सेना मलय प्रायद्वीप और रंगून, बर्मा से आगे बढ़ी और वे पूर्वी भारत तक पहुँच गए, यहाँ बोस ने ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया। बोस और उनकी सेना आईएनए मई 1944 को मणिपुर की राजधानी इम्फाल के बाहरी इलाके तक पहुंच गयी। अप्रैल 1944 से जून 1944 तक कोहिमा के युद्ध में आईएनए (INA) और मित्र राष्ट्रों की बीच भारी संघर्ष हुआ, साथ ही यहां मानसून की भारी बारिश एवं ब्रिटिश और अमेरिकन विमानों ने उन्हें वापस लौटने पर मजबूर किया। बोस बंगाल पहुँच गए जहाँ एक राष्ट्र उद्धारक के रूप में उनका स्वागत हुआ। 6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनायें माँगीं। यहाँ से साइगॉन (Saigon) लौटने के बजाय, उन्होंने ताइवान (फोरमोसा) के लिए उड़ान भरी। यहाँ मित्र राष्ट्रों की सेना ने 1945 आईएनए को हराकर बर्मा और मलाया पर पुनः कब्जा कर लिया। इधर बोस का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, और ताईवान के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। उनके शरीर के अवशेषों को जापान ले जाया गया। नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है, और भारत सरकार ने उनकी मृत्यु से सम्बन्धित दस्तावेज़ अब तक सार्वजनिक नहीं किये हैं।
नेताजी की मृत्यु की वजह का पता लगाने के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अप्रैल, 1956 में शाहनवाज खान की अगुवाई में एक जांच समिति, शाहनवाज समिति का गठन किया। 1970 में न्यायमूर्ति जीडी खोसला के नेतृत्व में खोसला आयोग का गठन किया गया। 1999 में एक तीसरा आयोग मुखर्जी आयोग गठित किया गया। इन सभी आयोगों की रिपोर्ट तत्कालीन सरकारों ने ख़ारिज कर दी थीं|
Recent Posts
- Daily Current Affairs 16-11-23 करंट अफेयर
- Daily Current Affairs 03-11-2023 करंट अफेयर
- Daily Current Affairs 30-10-2023 करंट अफेयर
- Daily Current affairs 28-10-2023 करंट अफेयर
- Daily Current Affairs 30-09-2023 करंट अफेयर
- Daily Current Affairs 28-09-2023 करंट अफेयर
- Daily Current Affairs 26-09-2023 करंट अफेयर
- भारत के प्रमुख नगरों के संस्थापक
- Daily Current Affairs 24-09-2023 करंट अफेयर
- Daily Current Affairs 23-09-2023 करंट अफेयर
- Daily Current Affairs 21-09-2023 करंट अफेयर
- Daily Current Affairs 20-09-2023 करंट अफेयर
- Daily Current Affairs 18-09-2023 करंट अफेयर
- Daily Current Affairs 16-09-2023 करंट अफेयर
- Daily Current Affairs 15-09-2023 करंट अफेयर
Hi samrpan.in administrator, Thanks for sharing your thoughts!
Hello samrpan.in administrator, Good job!
To the samrpan.in administrator, Thanks for the post!
stress relief music
Hi samrpan.in administrator, Your posts are always well organized and easy to understand.
Dear samrpan.in admin, Thanks for the well-researched and well-written post!
Hello samrpan.in admin, You always provide great examples and real-world applications.
To the samrpan.in admin, Keep up the great work!
Hi samrpan.in webmaster, Excellent work!