हरियाणा दर्शन : जिला झज्झर || HSSC EXAMS|| शहीदों का शहर ||

क्षेत्रफल: 1834 वर्ग किलोमीटर

जनसंख्या : 958405

जनसंख्या घनत्व : 523 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी.

लिंगानुपात: 862

साक्षरता दर : 80,83

गठन की तिथि 15 जुलाई, 1995

मुख्य उद्योग : यहां की झज्झरी प्रसिद्ध है।

परिचय :

इसे शहीदों का शहर कहा जाता है। झाज्झू अथवा झोझ गहलावत व्यक्ति के अनुरोध पर गौरी ने झज्जर शहर को बसाया था। इस इलाके पर मुगलों की हुकूमत के बाद फर्रुखसियर, रघुनाथराव, महाराज सूरजमल ने भी राज किया। सन् 1780 ई० में आयरलैंड में जन्में जॉर्ज थॉमस सिंधिया घराने के नवाब आप्पाजी खाँडेराव के संपर्क में आये । आप्पाजी खाँडेराव ने थॉमस को गोद लेकर उन्हें झज्जर, बेरी, मांडोठी, पटौदी इलाके सौंप दिये। बाद में मराठा हुकूमत ने उन्हें पानीपत, सोनीपत और करनाल भी सौंप दिए। अपनी बढ़ती ताकत को देखते हुए थॉमस सिंधिया घराने से अलग हो गये और उन्होंने झज्जर छोड़ हाँसी को अपनी राजधानी बना लिया।

  • सन् 1959 में बना झज्जर का पुरातात्विक संग्रहालय हरियाणा के मुख्य संग्रहालयों में से एक है।

बुआ का तालाब :  झज्जर में दिल्ली-झज्जर मार्ग पर 300 साल पुराना बुआ का तालाब काफी प्रसिद्ध है। यह जगह दो प्रेमियों के मिलने और बिछुड़ने की दास्तान की गवाह है |

 भीमेश्वरी देवी मन्दिर, बेरी :  झज्जर जिले के कस्बा बेरी में स्थित भीमेश्वरी देवी मन्दिर की महिमा न्यारी है। चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रों में यहाँ मेला भी लगता है। मान्यताओं के अनसार बेरी स्थित भीमेश्वरी देवी मन्दिर की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। दन्तकथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए देवकी पुत्र में श्रीकृष्ण के कहने पर भीम हिंगलाज (पाकिस्तान में) से अपनी कुल देवी को सिर पर उठा कर लाये थे और भीम ने इसे बेरी में ही एक तालाब के निकट स्थापित कर दिया था। बाद में यह देवी यहाँ भीमेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।

गुरुकुल झज्जर  पुरातात्विक संग्रहालय : वर्ष 1959 में आचार्या भगवानदेव उर्फ स्वामी ओमानन्द सरस्वती ने झज्जर में पुरातात्विक महत्त्व के संग्रहालय का श्रीगणेश किया। उन्हीं के असीमित प्रयासों से इस पुरातत्व संग्रहालय का विधिवत् उद्घाटन 13 फरवरी 1961 को राजस्थान के चौधरी कुम्भाराम आर्य ने किया था। 427 ताम्रपत्रों पर खुदाई करके लिखे गये स्वामी दयानन्द रचित सम्पूर्ण सत्यार्थ प्रकाश इस संग्रहालय की एक अनूठी और दुर्लभ कृति है।

गुरुकुल झज्जर : गुरुकुल झज्जर की स्थापना 16 मई, 1915 को महाशय विशम्बरदास स्वामी परमानन्द और स्वामी ब्रह्मानन्द द्वारा की गयी।

गौरैया पर्यटक स्थल : राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या दस पर बाहदुरगढ़ में गौरैया पर्यटक स्थल स्थापित किया गया |

काजी की मस्जिद :  दुजाना रोहतक से बाईस किमी दूर झज्जर मार्ग पर स्थित ग्राम दुजाना में निर्मित यह एक प्राचीन मस्जिद है। आज से लगभग दो सौ साल पहले सैयद हफीजुद्दीन नामक एक काजी ने इस मस्जिद का निर्माण करवाया था।

बैठक भवन, डीघल : प्रसिद्ध साहूकार लाला फतेहचन्द ने डीघल गाँव में सन् 1880 के आस-पास एक कलात्मक बैठक भवन का निर्माण करवाया।

महल, डीघल :  रोहतक से झज्जर मार्ग के पूर्व में बसे हुए डीघल ग्राम में बहुत साल पहले द्वारका और जोखी सेठ भाइयों ने एक दोमंजिला हवेली का निर्माण करवाया था जो आज भी मौजूद है। महल के नाम से प्रसिद्ध इस हवेली में ऊँची महराब देकर किले जैसी शैली का प्रवेश द्वारा बनाया गया है।

शिवालय, डीघल : रोहतक जिले में स्थित ऐतिहासिक गाँव डीघल में एक सदी पुराना शिवालय स्थित है। इस मन्दिर का निर्माण कार्य साहूकार लाला धनीराम ने शुरू करवाया था।

भिन्डावास पक्षी विहार : भिन्डावास पक्षी विहार झज्जर से 15 किमी दूर पहल गाँव में है। यह 1074 एकड़ में फैला है जो सुलतानपुर पक्षी विहार से भी बड़ा क्षेत्र है। इस पक्षी विहार में देशी व प्रवासी पक्षियों की लगभग 2500 प्रजातियां देखने को मिलती हैं। यहाँ बत्तख, बगुला, सारस, नीलकण्ठ, तीतर के अलावा जंगली बिल्ली भी देखी जा सकती है। दिसम्बर और जनवरी माह में यहाँ सैलानियों की भीड़ देखने लायक होती है क्योंकि इस दौरान यहाँ प्रवासी पक्षी अतिशय संख्या में देखें जा सकते हैं।

निरचा धाम, बेरी :  जिला झज्जर के कस्बा बेरी की पूर्वोत्तर में स्थित निरचा धाम का बड़ा महत्व है। इसे बाबा भगवानदास आश्रम के नाम से भी जाना जाता है।

पारम्परिक लघु उद्योग : झज्जर की झज्जरी यानी सुराही राष्ट्रीय स्तर पर = अपनी पहचान कायम किये हुए है।

बेरी :  झज्जर जिले में 14 अगस्त, 2009 को बेरी तहसील को उपमण्डल का दर्जा मिला था। बेरी को एक बिरदो नाम के कानूनगो ने बसाया था। बेरी को धनाढ्य लोगों का शहर कहा जाता था। जॉर्ज थॉमस को बेरी में मराठाओं से जागीर में मिली थी। जॉर्ज थॉमस ने यहाँ – के जाटों और राजपूतों की एक फौजी टुकड़ी गठित की थी, जिसने इस इलाके को राष्ट्रीय स्तर पर सैनिक सामरिक शक्ति का केन्द्र बना दिया था। में दो भीषण लड़ाईयां लड़ी गयी थी।

  1. प्रथम लड़ाई सन् 1794 में जाटों और जॉर्ज थॉमस के मध्य तब लड़ी गयी थी जब उसे झज्जर की आमिलदारी मिली थी। यह लड़ाई जॉर्ज ने जीती थी । दूसरी लड़ाई उसने सिक्खों और मराठों की संयुक्त सेना के विरुद्ध सन् 1801 में लड़ी थी। इस युद्ध में फ्रांसीसी जनरल पैरों ने बौरकीन लूई नामक कमांडर के साथ मराठा सेना भेजी थी। क्योंकि जहाजगढ़ किले में काफी मात्रा में रसद व राशन का जखीरा मौजूद था, इसलिए थॉमस ने बेरी के निकट पड़ाव लगाया जहाँ से यह किला मात्र तीन मील दूर था। बौरकीन लूई व सिक्खों की सेना को पहले दौर में बहुत क्षति के साथ-साथ हार का मुंह देखना पड़ा था परन्तु पैरों की अतिरिक्त सहायता और कुमुक से युद्ध चलता रहा । 8-10 दिन के बाद जब जहाजगढ़ किले का गोला-बारूद खत्म हो गया तब थामस का किलेदार सिताब खाँ बोरकीन लूई से जा मिला। अन्ततः थॉमस ने आत्मसमर्पण कर दिया और वह कलकता के लिए चल पड़ा। इस प्रकार एक मजबूत शासक का अन्त हो गया।
  2. हरियाणा के प्रथम मुख्यमंत्री पण्डित भगवतदयाल शर्मा और भारत सरकार के पूर्व रक्षामन्त्री प्रोफेसर शेरसिंह ने बेरी के राजकीय हाई स्कूल से शिक्षा ग्रहण की थी ।
  3. वर्तमान थल सेना अध्यक्ष जनरल दलबीर सुहाग झज्जर के बिसहान गाँव के हैं।
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