प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric): जानिए सारी जानकारी यहाँ से 01 ||

मानव सभ्यता का इतिहास वस्तुतः मानव के विकास का इतिहास है। मनुष्य का पृथ्वी पर कब और कैसे अवतरण हुआ, यह निश्चित और निर्विवादित रूप में आज भी कहना सम्भव नहीं है। लम्बे समय तक अन्धविश्वास और कल्पना के कोहरे में आवृत्त यह प्रश्न अनुतरित रहा। आधुनिक युग में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और वैज्ञानिक आविष्कारों ने प्रकृति के अन्य रहस्यों के उद्घाटन की भाँति मानव के उद्भव और विकास के रहस्यों के उद्घाटन में योग दिया है। इसके परिणामस्वरूप आज मानव के उद्भव और विकास का क्रमबद्ध विवेचन प्रस्तुत किया जा सकता है। मानव सभ्यता के क्रमिक विकास के युगानुगत विवेचन का नाम इतिहास है। मानव सभ्यता का इतिहास सुदूर अतीत में फैला हुआ है। मानव सभ्यता के इतिहास का वह काल-खण्ड जिसके सम्बन्ध में हमारा ज्ञान मूलतया पुरातात्विक साक्ष्यों पर आधारित है, प्रागैतिहासिक काल कहलाता है। प्रागैतिहासिक शब्द ऐसे काल को ध्वनित करता है जिसका आविर्भाव मानव रूप प्राणियों के आगमन के साथ एवं ऐतिहासिक काल के आगमन के पूर्व हुआ था। इस काल में मनुष्य लेखन-कला से सर्वथा अपरिचित था। इसलिए इतिहासकारों ने इसे प्राक् साक्षर काल भी कहा है। ऐतिहासिक काल से आशय मानव इतिहास के उस काल से है जिसके अध्ययन के लिए हमें उस युग के निश्चित साक्ष्य सुलभ है। प्रागैतिहासिक एवं ऐतिहासिक कालों में कालगत समता नहीं है। मानव इतिहास का 90% भाग प्रागैतिहासिक काल के अन्तर्गत आता है, शेष 10% ऐतिहासिक काल के अन्तर्गत। यहाँ हम इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए प्रागैतिहासिक काल की मानव सभ्यता को तीन महत्त्वपूर्ण भागों में बाँट सकते हैं-

1. प्रागैतिहासिक काल (मानव इतिहास के प्रारम्भ से लगभग 3000 ई.पू. तक का काल) इतिहास का वह भाग जिसके अध्ययन हेतु केवल पुरातात्विक समग्रियां पलब्ध हैं, प्रागैतिहासिक काल कहलाता है।

2. आद्य ऐतिहासिक काल- (3000 ई.पू. से 600 ई.पू. तक) सिंधु एवं वैदिक सभ्यता इस काल से संबंधित है। इसके अध्ययन हेतु पुरातात्विक एवं साहित्यिक दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं, परंतु पुरातात्विक साक्ष्यों का ही उपयोग हो पाता है। वैदिक साहित्य इसका अपवाद है।

3. ऐतिहासिक काल- (600 ई.पू. के पश्चात् का काल) इस काल के अध्ययन हेतु पुरातात्विक, साहित्यिक तथा विदेशियों के वर्णन, तीनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं। प्रागैतिहासिक काल-यह तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है-

  • पुरापाषाण काल- 5 लाख ई.पू. से 10 हजार ई.पू. तक।
  • मध्यपाषाण काल- 10 हजार से 6 हजार ई.पू. तक।
  • नवपाषाण काल- 6 हजार ई.पू. के पश्चात्।

पुरापाषाण काल

भारत की पुरापाषाणयुगीन सभ्यता का विकास प्लीस्टोसिन या हिम युग से हुआ। प्लीस्टोसिन काल में पृथ्वी की सतह का बहुत अधिक भाग, मुख्यत: अधिक ऊँचाई पर और उसके आसपास के स्थान पर बर्फ की चादरों से ढका था। आज से 10 लाख वर्ष पूर्व यह ग्रह अत्यन्त ठंडा होने लगा। ध्रुव प्रदेशों में बड़े-बड़े हिमनद प्रचण्ड वेग से नीचे उतरे जो 45° या उससे भी नीचे अक्षांशों तक पहुँच गये। फिर भूमध्य रेखा के निकट ही इसका प्रभाव पृथ्वी और विभिन्न जीवों पर पड़ा।

भारतीय पुरापाषाण युग को मानव द्वारा प्रयोग किये जाने वाले पत्थर के औजारों का स्वरूप तथा जलवायु में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर तीन अवस्थाओं में बाँटा जाता है। प्रथम अवस्था को आरम्भिक या निम्न पुरापाषाण युग कहा जाता है। इसका काल लगभग 5 लाख ई.पू. से 50 हजार ई.पू. तक माना जाता है। दूसरा काल मध्य पुरापाषाण युग है। इसकी अवधि लगभग 50 हजार ई.पू. से 40 हजार ई.पू. तक निर्धारित की जाती है। तीसरा काल उपरी पुरापाषाण युग था जिसका काल 40 हजार ई.पू. से 10 हजार ई.पू. तक रहा।

 

निम्न पुरापाषाण युग

इसका अधिकांश भाग हिमयुग से गुजरा है। इस काल के महत्त्वपूर्ण उपकरण हैं-कुल्हाड़ी या हस्त कुठार (Hand Axe), विदारणी (Cleaver) और खंडक चापर (Chopper)। इस समय मानव गंगा और यमुना के मैदान एवं सिंधु के कछारी मैदानों में नहीं बसा था।

भारत के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले पूर्व पाषाण काल के उपकरणों को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जाता है- चापर चापिंग पेबुल संस्कृति तथा हैण्ड एक्स संस्कृति। चापर बड़े आकार वाला वह उपकरण है जो पेबुल से बनाया जाता है। पत्थर के वे टुकड़े जिनके किनारे पानी के बहाव के कारण चिकने और सपाट हो जाते हैं, पेबुल कहलाते हैं। निम्न पुरा पाषाणकाल में उपकरण-निर्माण की विधियाँ दो प्रकार की थीं- कोर विधि तथा फ्रेक विधि। किसी पत्थर के टुकडे के आघात द्वारा पृथक किया गया भाग फ्रेक तथा उसका आन्तरिक भाग कोर कहलाता है।

निम्न पुरापाषाण स्थल भारतीय उपमहाद्वीप के लगभग सभी क्षेत्रों में प्राप्त होते हैं। इनमें आसाम की घाटी भी सम्मिलित है। एक महत्त्वपूर्ण निम्न पुरापाषाण स्थल सोहन की घाटी (पाकिस्तान) में मिलता है। यह सोहन सस्कृति के नाम से जाना जाता है। इस युग के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं, सोहन की घाटी, बेलन घाटी, आदमगढ़, भीमबेटका, नेवासा आदि। कई स्थल कश्मीर एवं थार मरुभूमि में भी प्राप्त हुए हैं किन्तु निम्न पुरापाषाण युग के औजार कश्मीर में ज्यादा नहीं मिले हैं क्योंकि हिमानी युग में कश्मीर में अत्यधिक ठंड पड़ती थी। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के पास बेलन घाटी तक महत्त्वपूर्ण निम्न पुरापाषाण स्थल था। इसी तरह राजस्थान के मरुभूमि क्षेत्र में डीडवाना, भोपाल के पास भीमबेटका, नर्मदा के पास नरसिंहपुर, महाराष्ट्र में प्रबरा नदी के पास नेवासा, जो गोदावरी नदी के पास भी स्थित है। आंध्र प्रदेश के गीदलूर एवं करीमपुरी आदि महत्त्वपूर्ण स्थल हैं। इनके अतिरिक्त मद्रास एवं कर्नाटक में भी कई स्थल प्रकाश में आये हैं। इस काल के लोगों ने क्वार्टजाइट पत्थरों का प्रयोग किया था। ये लोग शिकारी एवं खाद्य संग्राहक की श्रेणी में आते हैं। इस काल में वे बड़े पशुओं को मारते थे।

मध्य पुरापाषाण काल

इस काल की महत्त्वपूर्ण विशेषता थी, प्रयुक्त होने वाले कच्चे माल में परिवर्तन। पुरापाषाण काल में क्वार्टजाइट प्रमुख कच्चा माल था जबकि मध्य पुरापाषाण काल में जेस्पर, चर्ट आदि का प्रयोग प्रमुख कच्चे माल के रूप में होने लगा। इस काल में क्रोड उपकरणों की प्रधानता लुप्त हो गई जबकि शल्क विनिर्माण का प्रचलन बढ़ता गया। मध्य पुरापाषाण काल के स्थल प्राय: सम्पूर्ण देश में बिखरे हुए हैं। हालांकि उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में उतने स्थल प्राप्त नहीं होते जितने प्रायद्वीपीय क्षेत्र में प्राप्त हुए हैं। इसका मुख्य कारण पंजाब में उपयुक्त कच्चे माल का अभाव। नेवास (गोदावरी नदी के तट पर) मध्य पुरापाषाण काल की संस्कृति का प्रारूप स्थल है। एच.डी. संकालिया ने इसे प्रारूप स्थल घोषित किया है। इस काल में हमें काटने के औजारों की (Chopper) प्रधानता मिलती है। इस काल में पाए जाने वाले उपकरणों में ‘चापर’, ‘ब्लेड’, बेधक, ‘व्यूरिन’, चान्द्रिक, ‘स्क्रपर’ तथा ‘छिद्रक’ आदि हैं।

उच्च पुरापाषाण काल

इस काल में नमी कम हो गई। इस अवस्था का विस्तार हिमयुग की उस अंतिम अवस्था के साथ रहा जब जलवायु अपेक्षाकृत गर्म हो गयी। इस काल की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. इसमें उपकरण बनाने की मुख्य सामग्री लम्बे स्थूल प्रस्तर फलक होते थे।
  2. इस काल के उपकरणों में तक्षणी और खुरचनी उपकरणों की प्रधानता बढ़ती गयी।
  3. इस काल में अस्थि (हड्डी) उपकरणों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण हो गयी।
  4. इस काल में नक्काशी और चित्रकारी दोनों रूपों में कला का विकास हुआ। विंध्य क्षेत्र में स्थित भीमबेटका में विभिन्न कालों की चित्रकारी देखने को मिलती है। प्रथम काल में उत्तर पुरापाषाण काल की चित्रकारी में हरे व गहरे लाल रंग का उपयोग हुआ है।

सोहन नदी घाटी शिवालिक के सामने सोहन नदी घाटी से निम्न पुरापाषाण कालीन उपकरण प्राप्त हुए हैं। यहाँ 1931-32 के बीच येल कैंब्रिज अभियान दल  के डी. टेरा और पैटर्सन के नेतृत्व में उत्खनन प्रारंभ हुआ, यहाँ से प्राप्त उपकरण फ्लेक तकनीक से बनाए गए। भारत में सबसे पुराने हस्त कुठार, गडाँसा, खंडक की प्राप्ति इस क्षेत्र से हुई है। यहाँ से फलक उद्योग का प्रमाण मिलता है।

भीमबेटका- मध्य प्रदेश के रायसन जिले में स्थित इस पहाड़ी से मनुष्य के गुफावास का प्रमाण मिलता है। यहाँ से प्राप्त 500 गुफा चित्रों में 5 गुफा चित्र पुरापाषाण काल के तथा शेष चित्र मध्यपाषाण काल के हैं। इन गुफा चित्रों की महत्ता को प्रकाश में लाने का श्रेय श्री वाकणकर महोदय को जाता है। भीमबेटका से नीले रंग के कुछ पाषाण-खण्ड मिले हैं। वाकणकर महोदय के अनुसार, इनके द्वारा चित्रकारी के लिए रंग तैयार किया जाता था

इथनौरा- नर्मदा घाटी क्षेत्र में स्थित यह स्थल मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित है। यह उपरी पुरा पाषाणकालीन स्थल है जिसकी खोज 1987 में की गई। इसी स्थल से भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वप्रथम मानव खोपड़ी की प्राप्ति हुई है जो होमो इरैक्टस समूह से संबंधित है। इससे पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप में कहीं भी पुरापाषाण कालीन मनुष्य का अवशेष नहीं प्राप्त हुआ है। यहाँ पशुओं के जीवाश्म के रूप में हाथी की दो प्रजातियाँ भी प्राप्त हुई हैं।

बेलनघाटी क्षेत्र- उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर और इसके समीपवर्ती क्षेत्रों में विस्तृत बेलनघाटी क्षेत्र में पाषाणयुगीन 44 क्षेत्रों की खोज की गई है। यह भारतीय उपमहाद्वीप का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहाँ से तीनों चरणों के प्रमाण मिले हैं। यहाँ से पाषाण युग के क्रमिक विकास को बताया जा सकता है।

लोंहदाबाद क्षेत्र- यह क्षेत्र ऊपरी पुरापाषाण कालीन स्थल है। यहाँ से 30,000 ई.पू. की मूर्ति प्राप्त हुई है। इस पर विवाद है कि यह मूर्ति है या उपकरण। फिलहाल इसे उपकरण माना गया है।

बोरी- महाराष्ट्र के पुणे में स्थित इस पुरापाषाण कालीन स्थल की खोज 1988 में की गई। इस क्षेत्र में ज्वालामुखी उद्गार स्तरों की प्राप्ति हुई है और इन दोनों स्तरों से उपकरणों की प्राप्ति हुई। यहाँ से भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे पुराने उपकरण की प्राप्ति हुई है। यह क्षेत्र पुरा पाषाण काल को लगभग 12 लाख वर्ष पूर्व ले जाता है।

अतिरमपक्कम मद्रास के निकट स्थित अतिरमपक्कम निम्न पुरापाषाणिक स्थल है। सोहन घाटी की तरह यहाँ से भी निम्न पुरापाषाणकाल का तकनीकी विकासक्रम प्राप्त होता है। लेकिन सोहन घाटी के उपकरण फ्लेक निर्माण विधि से बनाए जाते थे, जबकि अतिरमपक्कम के उपकरण कोर निर्माण तकनीक से। यहाँ उपकरण एचूंलियन टाइप या एवीविले टाइप के होते हैं।

पल्लवरम- मद्रास के निकट स्थित पल्लवरम भारत का सबसे पहला स्थल है जहाँ से पाषाणकालीन उपकरण प्राप्त हुए हैं। यह भारत में खोजा गया, पहला पुरा पाषाण-कालीन स्थल है। 1867 में राबर्ट बूस फूट और ओल्ड हेम को यहाँ से हस्तकुठार की प्राप्ति हुई है।

मच्छुतावी-चिन्तामनुगावी पहाड़ी- आंध्रप्रदेश में स्थित कुरनूल प्राचीनतम पुरापाषाण कालीन स्थल है। यहाँ से प्राप्त उपकरण क्वार्टजाइट, कैल्सेडोनी, सैडस्टोन, फ्लिट और चर्ट से बने हैं। फ्लिट और चर्ट मिलने से इस धारणा का खण्डन हुआ है कि निम्न पुरापाषाण कालीन मनुष्य फ्लिट और चर्ट का प्रयोग नहीं करते थे। यहाँ से पशुओं के हड्डी के उपकरण प्राप्त हुए हैं। यह कई पुरानी धारणाओं का खण्डन करता है। छनी प्रस्तर भी सर्वप्रथम यहीं से प्राप्त हुआ है।

Please Share Via ....

Related Posts

99 thoughts on “प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric): जानिए सारी जानकारी यहाँ से 01 ||

  1. If so, I would have agreed, Androni does turmeric interact with blood pressure medication s face suddenly turned red, and she said angrily You dare to hit me to pay attention stromectol buy canada Indeed, the hormonal fluctuations that occurred during the consumption of birth control pills can be a reason for the acne breakouts

  2. Everything information about medication. Comprehensive side effect and adverse reaction information.
    stromectol order
    drug information and news for professionals and consumers. Read here.

  3. When a magician is strong enough, he will have an understanding of the cbd oil and blood pressure medication operation law of this space, and it is possible to rely on powerful magic to make the soul span different spaces adverse effects of tamoxifen Many couples are turning to acupuncture to treat infertility

  4. Prescription Drug Information, Interactions & Side. Commonly Used Drugs Charts.
    1 lisinopril
    Drugs information sheet. Learn about the side effects, dosages, and interactions.

  5. Definitive journal of drugs and therapeutics. п»їMedicament prescribing information.
    new ed drugs
    drug information and news for professionals and consumers. Some are medicines that help people when doctors prescribe.

  6. The article has truly peaked my interest. I will take a note of your site and keep checking for new information about once per week i have learn several just right stuff here 온라인바카라’m really impressed with your writing skills Aspectmontage makes it easy as can be and affordable for you to upgrade your windows, doors, roofing, showers or baths.

  7. Everything what you want to know about pills. Comprehensive side effect and adverse reaction information.

    buying clomid
    Generic Name. earch our drug database.

Leave a Reply

Your email address will not be published.