HARYANA DARSHAN

हरियाणा दर्शन : जिला कुरुक्षेत्र || धर्म नगरी ||

क्षेत्रफल : 1530 वर्ग किलोमीटर

जनसंख्या : 964655

जनसंख्या घनत्व : 630 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी.

लिंगानुपात : 888

साक्षरता दर : 76.70

गठन की तिथि : 23 जनवरी, 1973

मुख्य उद्योग : कृषि उपकरण

श्रीमद्भगवदगीता की जन्मस्थली कुरुक्षेत्र आर्य संस्कृति का सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं प्राचीन केन्द्र है। सन् 1956 में यहाँ कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की स्थापना की गई और सन् 1973 में कुरुक्षेत्र को स्वतंत्र जिला बनाया गया था।

 

  • बौद्ध तथा जैन साहित्य में जिस थूण अथवा थूणा ग्राम का उल्लेख है, वही आगे चलकर स्थाणीश्वर नगर यानी थानेसर कहलाया। इस नगर की गणना उन कुछ नगरों में की जाती है जिन्हें प्राचीन भारत में राजधानी होने का गौरव प्राप्त था।
  • यह श्रीकंठ जनपद की राजधानी थी। शक्तिशाली वर्धनवंश का उदय यहीं हुआ था जिसमें दो प्रतापी शासकों प्रभाकरवर्धन और हर्षवर्धन (सन् 606-647 ई०) के समय यह नगर गौरव के उच्चतम शिखर को स्पर्श कर रहा था।
  • स्थाणीश्वर नगर का गौरवपूर्ण इतिहास ‘हर्ष चरित और चीनी यात्री ह्यूनत्सांग के वृतांतों से भी ज्ञात होता है।

महाभारत का युद्ध

भरत कुल का सम्राट शान्तनु गंगा और यमुना के मध्यवर्ती भूभाग पर राज्य करता था। हस्तिनापुर के उसकी राजधानी थी। उसके तीन पुत्र भीष्म, चित्रांगद और विचित्र वीर्य थे। भीष्म ने अपने पिता के जीवन को सुखमय बनाने के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने और राज्य सिंहासन पर अपने अधिकार त्याग दिये थे। चित्रांगद के बाद विचित्रवीर्य सिंहासन पर बैठा। उसके दो पुत्र थे धृतराष्ट्र और पाण्डु । धृतराष्ट्र जन्मान्ध थे जिनके 101 पुत्र थे जिनमें दुर्यो थे- युधिष्ठिर, ज्ञान सबसे बड़ा था। पाण्डु के पाँच पुत्र थे –भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पाण्डु की असमय मृत्यु हो गयी, अतः धृतराष्ट्र राज्य प्रबन्ध करने लगा। पाण्डु पुत्र अभी बालक थे। धृतराष्ट्र का चाचा भीष्म प्रधानमन्त्री बना। कौरवों और पाण्डवों में एकता नहीं थी। युधिष्ठिर बड़े सत्यवादी तथा धर्मपराण थे। धृतराष्ट्र राज्य उसे ही देना चाहता था। किन्तु अभिमानी दुर्योधन और उसके भाई राज्य अपने लिए चाहते थे। फलतः दुर्योधन के षड्यंत्र के कारण पाण्डवों को हस्तिनापुर छोड़ना पड़ा। यहाँ से ये पांचाल देश में पहुँचे जहाँ राजा द्रुपद की सुपुत्री दोपदी का स्वयंवर हो रहा था। धनुर्विद्या में निपुण अर्जुन ने स्वयंवर की शर्त को पूरा किया और दोपदी के साथ उसका विवाह हो गया। इससे पाण्डवों की शक्ति बढ़ी और उन्होंने आधे-राज्य की मांग की। कौरवों ने गंगा और यमुना का मध्यवर्ती उपजाऊ क्षेत्र तो अपने पास रख लिया और पश्चिम का अनुपजाऊ क्षेत्र तथा वनप्रान्तर पाण्डवों को दे दिया। पाण्डवों ने वनों को साफ करे इन्द्रप्रस्थ नाम का एक नया नगर बसाया और उसे अपनी राज जानी बनाया। कौरव पाण्डवों को उन्नति करते न देख सके और उन्हें नष्ट करना चाहा। उन्हें जुआ खेलने को बुलाया जिसमें युधिष्ठिर अपना राज्य, धन, अपनी पत्नी, सभी भाई और स्वयं को भी हार गये थे। जुए की एक शर्त के अनुसार पाण्डवों को बारह वर्ष का बनवास तथा एक वर्ष अज्ञातवास का दण्ड मिला। तेरह वर्ष के बाद पाण्डव वापिस लौटे और अपना राज्यमा किन्तु दुर्योधन ने बिना युद्ध किये सूई क के बराबर भूमि देने से भी इनकार कर दिया। समझौता करवाना चाहा, लेकिन प्रयत्न विफल हो गये। युद्ध अनिवार्य हो गया। अठारह दिन तक क्षेत्र की भूमि पर दोनों पक्षों में भीषण युद्ध  हुआ। इस युद्ध में भारत के लगभग सभी प्रमुख राज ने भाग लिया।

 

  • आईन-ए-अकबरी के अनुसार कस्बे का नाम तो थानेश्वर (थानेसर) था और इसके निकट सरोबर का नाम कुरुक्षेत्र है।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की स्थापना राज्य विधानसभा के एक्ट 12 एफ 1956 के तहत हुई। 11 जनवरी, 1956 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद ने इस विश्वविद्यालय की नींव रखी। यह हरियाणा राज्य की पहली यूनिवर्सिटी मानी जाती है। यहाँ का पर्यटन विभाग देश का इकलौता विभाग है जो ए.आई.सी.टी. ई से मान्यता प्राप्त है। कलानिधि नाम से विश्वविद्यालय की पत्रिका सन् 1965 और रिसर्च जरनल का प्रकाशन सन 1967 से किया जा रहा है |

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एन. आई.टी.)

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कुरुक्षेत्र भारतवर्ष के बीस संस्थानों में से एक है। पहले यह एक रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज था। 26 जून 2002 को भारत सरकार द्वारा संस्थान को मानित विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया।

लाडवा

यह नगर सिक्खों के घरानों का माना जाता है। सिक्खों के प्रथम युद्ध के पश्चात ही अंग्रेजों ने इसे अपने अधिकार में ले लिया था। कुरुक्षेत्र जिले की यह सर्वाधिक प्राचीन नगरपालिका है जिसकी स्थापना सन् 1867 में की गयी थी।

शाहबाद

यह नगर जी.टी. रोड पर कुरुक्षेत्र से 23 किमी की दूरी पर मारकंडा नदी के किनारे पर बसा हुआ है। सन् 1192 में तरावड़ी की लड़ाई के पश्चात् शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी के जनरल ने इस नगर की स्थापना की थी। इसी स्थान पर महर्षि मारकण्डेश्वर की तपस्या स्थली है जो बाद में शाहबाद मारकंडा के रूप में आबाद हुई शाहबाद को न्यायाधीश और अफसरों की जन्मदात्री नगरी के रूप में जाना जाता |

कुरुक्षेत्र के महत्त्वपूर्ण स्थल

 

पैराकीट

हरियाणा पर्यटन विभाग द्वारा कुरुक्षेत्र में पर्यटकों की सुविधा के लिए पीपली नगर से कुरुक्षेत्र जाने वाले मार्ग पर पैराकीट नामक पर्यटन स्थल का संचालन किया जा रहा है।

भोर सैदा : लगभग आठ एकड़ क्षेत्र में बनी मगरमच्छों की वाइल्ड लाइफ सेंच्युरी कुरुक्षेत्र से 13 किमी दूरी पर स्थित है।

ज्योतिसर :-  ज्योतिसर सरोवर कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से आठ किमी दूर पेहवा मार्ग पर सरस्वती नदी के लुप्तप्राय प्रवाह पथ के किनारे स्थित है। ज्योतिसर का अर्थ है ज्ञान का सरोवर महाभारत युद्ध के समय रणक्षेत्र में इस स्थान पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश बरगद के पेड़ के नीचे दिया था। यह पेड़ आज भी विद्यमान है। ज्योतिसर सरोवर की लम्बाई 1000 फीट तथा चौड़ाई 500 फुट है।

ब्रह्म सरोवर :- यह तीर्थ कुरुक्षेत्र में थानेसर सिटी स्टेशन के समीप स्थित है। इसे कुरुक्षेत्र सरोवर भी कहते हैं। इस तीर्थ का आकार 1219608.6 मीटर है। माना जाता है कि इस सरोवर को राजा कुरु मे खुदवाया था। सूर्य के अवसर पर देश-विदेश के विभिन्न भागों से लोग यहाँ आकर इसके पवित्र जल में स्नान करते हैं |

गुरुद्वारा पहली पातशाही :-

यह गुरुद्वारा सिक्खों के प्रथम गुरु नानकदेव जी के कुरक्षेत्र आगमन की स्मृति में निर्मित है।

गुरुद्वारा छठी पातशाही

कुरुक्षेत्र में यह गुरुद्वारा सन्निहित तीर्थ के समीप ही स्थित है।

गीता भवन

यह स्थान हा सरोवर के उत्तरी तट से कुछ दूरी पर विद्यमान है रीवा मध्य प्रदेश के महाराज 1921 ई० में इसकी स्थापना कुरक्षेत्र पुस्ताकालय के नाम से की थी।

पृथुक्क तीर्थ, पेहोवा

कुरक्षेत्र की 48 कोसी परिक्रमा में स्थित में सबसे अधिक महत्व पृथुदक को दिया गया। है। पदक की पहचान आधुनिक पेहवा के रूप में की जाती है। यह थानेसर से 25 किमी पश्चिम में स्थित है। महाभारत ग्रन्थ में यह कथन है कि सरस्वती के किनारे स्थित तीर्थों में पृथुदक सर्वोपरि है। परम्परा के अनुसार राजा पृथु ने अपने पिता वेणु का तर्पण यहीं किया था। इसी कारण इस स्थल का नाम पृथुदक (पृथु का जल) प्रसिद्ध हुआ। यहाँ पर पितरों का श्रद्ध किया जाता है। इसे हरियाणा की गया नगरी कहा जाता है। गया में भी पितरों का श्राद्ध किया जाता है।

सरस्वती तीर्थ :- प्राचीन सरस्वती तीर्थ तट पर श्राद्ध और पितर पिण्ड दान के लिए विशेष स्थान है जिसे प्रेत पीपल और प्रेत शिक्षा के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रेत पीपल में भगवान विष्णु का निवास है। पेहवा के सरस्वती तीर्थ में स्नान का विशेष महत्त्व माना जाता है।

गुरुद्वारा नौवीं पातशाही :-

कुरुक्षेत्र में स्थाएवीश्वर महादेव मन्दिर के निकट यह गुरुद्वारा गुरु तेगबाहदुर की स्मृति में स्थापित किया गया है।

गुरुद्वारा दसवीं पातशाही :

यह गुरुद्वारा सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी के कुरुक्षेत्र आगमन का प्रमाण है। सन् 1704 में गुरुजी सूर्य ग्रहण के अवसर पर यहाँ पधारे थे।

बाण गंगा

यह स्थान थानेसर ज्योतिसर मार्ग पर नरकातारी ग्राम के निकट है। इसी स्थान पर भीष्म कुण्ड बाण गंगा तीर्थ है। लोक मान्यता है कि अर्जुन ने धरती में बाण मारकर यहीं पर गंगा निकाली थी और उसकी जलधारा शरशय्या पर पड़े भीष्म पितामह के मुख में पहुंची थी।

कमलनाभ तीर्थ

माना जाता है कि सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता ब्रह्मा जी इस स्थान पर प्रकट हुए थे।

चन्द्रकूप

यह एक कुआँ है जो कुरुक्षेत्र के पवित्र कूपों में गिना जाता है। इसके निकट एक मन्दिर है जो धर्मराज युधिष्ठिर ने महाभारत के युद्ध के बाद बनवाया था।

कमोधा वन

कमोधा स्थान थानेसर से 14 किमी दक्षिण-पश्चिम में है। आधुनिक कमांधा का सम्बन्ध प्राचीन काम्यक वन से है। यह वन प्राचीनकाल में सरस्वती के तट से लेकर मरू प्रदेश तक फैला हुआ था। पाण्डवों ने भी इसी वन में निवास किया था।

कालेश्वर तीर्थ

जनश्रुति के अनुसार रामायण काल में यहाँ रुद्र की प्रतिष्ठा की गयी थी।

सन्निहित तीर्थ हरियाणा

यह तीर्थ कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से लगभग डेढ़ किमी की दूरी पर कुरुक्षेत्र पेहवा रोड पर स्थित है। लगभग 47244 मीटर लम्बा तथा 137 16 मीटर चौड़ा यह तीर्थ कुरुक्षेत्र के पवित्रतम तीर्थों में सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इस तीर्थ के तीन ओर पक्के तथा सुन्दर घाट बने हुए हैं। इस स्थल को भगवान विष्णु का स्थायी निवास माना जाता है।

दक्षिणमुखी प्राचीन हनुमान मन्दिर

कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर के उत्तर-पश्चिमी तट पर स्थित श्री दक्षिणमुखी प्राचीन हनुमान मन्दिर के गर्भगृह में स्थापित पवन पुत्र हनुमान का प्राचीन स्वरूप अंकित है।

स्थानेश्वर महादेव मन्दिर, थानेसर

थानेसर नगर के उत्तर में कुछ फलांग की दूरी पर सम्राट हर्षवर्धन के पूर्वज राजा पुष्यभूति द्वारा निर्मित स्थानेश्वर महादेव मन्दिर सुविख्यात है। यही वह स्थान है जहाँ पाण्डवों ने भगवान शिव से प्रार्थना की और उनसे महाभारत के युद्ध में विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया था।

श्रीकृष्ण संग्रहालय

श्रीकृष्ण संग्रहालय की स्थापना वर्ष 1991 में कुरुक्षेत्र में की गयी थी।

सर्वेश्वर महादेव मन्दिर

कुरुक्षेत्र के प्रमुख मन्दिरों में से यह प्रमुख है। सर्वेश्वर महादेव का मन्दिर ब्रह्म सरोवर पर उत्तर की ओर एक टापू पर स्थित है।

देवीकूप (भद्रकाली मन्दिर)

यह मन्दिर कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन के निकट झाँसा रोड पर स्थाणु (शिव) मन्दिर के निकट है। यह मन्दिर भद्रकाली को समर्पित है। कुरुक्षेत्र में संपूजित श्री देवीकूप भद्रकाली मन्दिर में माता सती का दायाँ रखना स्थापित है।

शेख चेहली का मकबरा :-थानेसर थानेसर नगर के उत्तर-पश्चिम कोण पर में ही हो गयी और उन्हें यहाँ दफना दिया गया। संगमरमर से बना हुआ एक सुन्दर मकबरा है। शेख मकबरे में संगमरमर की जाली के कटाव अत्यन्त चेहली का मकबरा पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधि आकर्षक हैं। इसी कारण शेख चेहली के मकबरे को नियम, 1958 के अधीन राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक हरियाणा का ताजमहल भी कहा जाता है। घोषित किया गया है। यह मकबरा सूफी सन्त शेख चेहली का है जो मुगल सम्राट शाहजहाँ के शासनकाल में इरान से चलकर भारत में हजरत क़ुतुब जलालुदीन से मिलने थानेश्वर आये थे | उन्होंने यहाँ जलालुदीन से भेंट की | दुर्भाग्य से शेख चेहली की थानेश्वर में ही मृत्यु हो गयी थी और यहीं उन्हें दफना दिया गया था |मकबरे में संगमरमर की जली के कटाव अत्यंत आकर्षक हैं | इसी कारण शेख चेहली के मकबरे को हरियाणा का ताजमहल भी कहा जाता है |

 

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