Netaji Subhas Chandra Bose की राष्ट्रवादी लहर से मिली देश को आजादी! जानिए Netaji Subhas Chandra Bose के बारी में||

पराक्रम दिवस पर देश नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती मना रहा है। आखिर क्या योगदान था सुभाष बाबू का देश की आजादी में, जानते हैं इस लेख में।

हमने अपनी स्कूल(School) की किताबों में अवश्य यह पढ़ा होगा की भारत को स्वतंत्र कराने का काम महात्मा गांधी(Mahatma Gandhi) एवं कांग्रेस(Congress) ने किया है , हो सकता है कई लोग इसे सच्चाई समझ बैठे हो और इसको स्वीकार कर लिया हो की आज़दी चरखा चलाकर ही प्राप्त हुई है, परन्तु इस बात के पीछे भी बहुत रहस्य हैं।

आप लोगों के मन में भी यह अवश्य प्रश्न आता होगा , क्या अंग्रेज(British Government) इतने कमजोर थे कि कांग्रेस(Congress) के द्वारा चलाए जा रहे आंदोलनों को दबा ना सके? ये वही अंग्रेज थे जिन्होंने 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम को दबा दिया , असहयोग आंदोलन से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन ना जाने इनके बीच कितने आंदोलनों को अंग्रेजों ने दबा दिया फिर भी क्या कारण था कि अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा?

“आजादी मांगी नहीं छीनी जाती है “ ये शब्द नेताजी सुभाष चंद्र बोस(Subhas Chandra Bose) के हैं जिन्होंने आजादी की लड़ाई में उस ईंधन का काम किया जिससे भारत की स्वतंत्रता रूपी दीप प्रज्वलित हो पाई। अब प्रश्न उठता है इसमें सुभाष चंद्र बोस ने किस तरह ईंधन का काम किया? दरअसल नेताजी(Subhas Chandra Bose) की कथित मृत्यु के बाद देश में राष्ट्रवाद(Nationalism) की लहर जोरों पर थीं। यह उसी लहर का कमाल था जो तीनों सेनाओं में बगावत करवा रहा था। जिसकी शुरुआत फरवरी 1946 में रॉयल इंडियन नेवी(Royal Indian Navy) के सैनिकों में व्यापक बगावत करने से हुई थी। जिनकी मांगे तो मुख्य रूप से अलग थी , लेकिन लक्ष्य केवल एक था भारत को आजाद करवाना। नेवी की कार्रवाई में कराची से कलकत्ता तक के तटीय इलाकों के 66 नौसैनिक जहाजों में सवार 10,000 सैनिकों ने बगावत कर दी थी।

रॉयल इंडियन एयर फोर्स(Royal Indian Airforce) में भी नेवी की देखादेखी बगावत होना प्रारंभ हो चुकी थी। आरएएफ के सैनिकों की कार्रवाई बागी नौसैनिकों के प्रति सहानुभूति जताने के लिए थी लेकिन वास्तविकता भारत को स्वतंत्र कराना था। अब बारी थलसेना की थी। थल सेना में बगावत की शुरुआत जबलपुर से प्रारंभ हुई थी। जिसके बाद बगावत का सिलसिला प्रत्येक इकाई में फैल गया था। अब अंग्रेजों(British Government) की आंखें खुल गई थी और वे समझ गए थे कि वक्त आ गया है जब स्थितियों को और बिगड़ने से पहले उन्हें चले जाना चाहिए।

भारत छोड़ने को लेकर अंग्रेजों(British Government) की मजबूरियों को बताने वाला सबसे महत्वपूर्ण बयान किसी और ने नहीं बल्कि लॉर्ड क्लेमेंट एटली(Lord Clement Atlee) ने दिया था , जो भारत की स्वतंत्रता के समय ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे। वे कलकत्ता दौरे पर आए थे। उसी दौरान एटली से कलकत्ता हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पीवी चक्रवर्ती(PV Chakraborty) ने पूछा था की ब्रिटिश भारत क्यों छोड़कर चले गए ? उन्होंने ने अपने कथन से पहले प्रस्तावना के रूप में कहा था कि भारत छोड़ो आंदोलन 1947 में बहुत पहले शांत पड़ चुका था और भारत की स्थिती ऐसी नहीं थी अंग्रेजों को जल्द उसे छोड़ना चाहिए।



एटली(Lord Clement Atlee) ने अपने जवाब में कई कारण गिनाए जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण नेताजी सुभाष चंद्र बोस(Subhas Chandra Bose) की आईएनए(INA) की गतिविधियाँ थी , जिसने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य(British Government) की नींव हिला दी थी और रॉयल इंडियन नेवी की बगावत जिसने अंग्रेजों को यह करने को विवश कर दिया कि अपनी हुकूमत को बनाए रखने के लिए वे भारतीय सैन्य बलों पर अब और भरोसा नहीं कर सकते । इस प्रकार भारत को 1947 में आजादी मिली ।


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