Geography

भारत की प्रमुख जनजातियाँ :-भोटिया या भूटिया

भोटिया या भूटिया

निवासक्षेत्र– भोटिया लोगों का निवास क्षेत्र उत्तरांचल के अल्मोड़ा जिले का उतरपूर्वी भाग है, जिसमें असकोट और दामा तहसीलें सम्मिलित हैं। यह क्षेत्र ऊबड़खाबड़ है। सन्पूर्ण भोटिया क्षेत्र 3,250 मीटर से 4,100 मीटर ऊँचा है, जिसमें कृष्णा, गंगा, धौली, गौरी, दामा और काली नदियाँ वहती हैं।

शारीरिक गठन– भोटिया शब्द की उत्पति भोट से हुई है। भूट प्रदेश से ही इन लोगों का सम्बन्ध रहा है। शारीरिक रचना की दृष्टि से ये लोग मध्यम अथवा छोटे कद के होते हैं। नाक सामान्यतः चौड़ी और चपटी और जड़ों में अधिक धंसी हुई, चेहरा चौड़ा, आँखें बादाम के आकार की, शरीर पर बाल, हृष्टपुष्ट, माँसल देह, चमड़ी का रंग गोरा, पीला और गाल लाल होते हैं।

इस प्रकार इनमें मंगोलियाई प्रजाति का मिश्रण व प्रभाव स्पष्ट दिखायी देता है।

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बस्तियाँ और घर- भोटिया लोगों की बस्तियाँ प्राय: नदियों की घाटियों में ही पायी जाती हैं, क्योंकि यहाँ समतल भूमि के कारण आवागमन की सुविधा मिलती है तथा कृषि कार्य के लिए जल और उपजाऊ भूमि मिल जाती है। जलवायु भी ऊपरी भागों की अपेक्षा गरम रहती है, लेकिन नदियों की घाटियाँ भी सामुद्रिक धरातल से 3 या 4 हजार मीटर ऊँची होती हैं। गाँव छोटे, विखरे हुए, देतरतीब एवं देखने में भद्दे होते हैं। सामान्यतः गाँव स्थायी निवास के क्षेत्र नहीं होते, इनमें 2-3 महीनों के लिए भोटिया लोग रहते हैं और उसके बाद अन्यत्र चले जाते हैं। निचली घाटियों में अस्थायी वस्तियाँ हैं जो नदियों की घाटियों में बनायी जाती हैं। शीतकाल में जब बर्फ गिरने लगती है तो ऊपरी भाग से ये लोग घाटियों में बने अस्थायी घरों में रहने चले आते हैं। अधिकांश घर एक मंजिल के तथा 2-3 कमरों के होते हैं। ये पत्थर, मिट्टी, घासफूस से बनाए जाते हैं।

भोजन- भोटिया लोगों का मुख्य भोजन गेहूँ की भूनकर पीसे गए आटे का सतू, जौ तथा महुआ होता है। भेड़ बकरियों से दूध और माँस प्राप्त कर उसे भी खाया जाता है। एक प्रकार का पेय (जो पर्वतीय पतियों को पानी में उवालकर तथा उसमें नमक और घी मिलाकर बनाया जाता है) पिया जाता है। त्योहार पर माँस व शराब का खूब उपयोग किया जाता है।

वस्त्राभूषण- भोटिया लोगों के वस्त्रों में भेड़, बकरी से प्राप्त बालों के ऊनी वस्त्र होते हैं एवं ऊनी पजामा, ऊनी टोपी, कमीज, आदि हैं। पीठ पर नितम्बों तक लम्बा ऊनी लवादा जैसा वस्त्र, कमर पर बाँधा जाता है जो एड़ी तक चला जाता है। स्त्रियाँ अधिकतर तथा विभिन्न डिजायन वाला घाघरा पहनती हैं।

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व्यवसाय– प्रतिकूल वातावरण के कारण जीवन-निर्वाह कठिन होता है। कृषि कार्य में ओले, हिमपात, पाला, भू-स्खलन, आदि दैवी-आपदाओं के कारण अनिश्चितता रहती है, जीवनयापन का अन्य साधन होने से ये बहुमुखी व्यवसायकुछ कृषि, कुछ पशुपालन, कुछ कुटीर उद्योग और कुछ व्यापार करते हैं। इनके व्यवसाय स्थायी न होकर गतिशील होते हैं। ये लोग ऊनी वस्त्र बुनने में बहुत प्रवीण होते हैं और शीतकाल में प्रति वर्ष बुने हुए ऊनी वस्त्र लेकर देश के विभिन्न नगरीय भागों में बेचने निकल पड़ते हैं|

भूट क्षेत्र में भूमि के ऊबड़खाबड़ होने, समतल धरातल के अभाव, पहाड़ एवं अनुपजाऊ मिट्टी, अधिक ऊँचाई के कारण शीतकालीन तापमानों का अत्यन्त नीचा होना तथा जल की कमी, आदि के कारण कृषि  सामान्यतया पहाड़ी ढालों पर और नदियों की घाटियों में छोटे-छोटे खेतों में की जाती है। खेती के अन्तर्गत गेहूं, तिव्वती जौ, महुआ, आलू और सरसों पैदा किया जाता है। यहाँ का मुख्य व्यवसाय पशुपालन है, क्योंकि यहाँ मुलायम घास के क्षेत्र पाए जाते हैं, अतः याक, भेड़, बकरियाँ पाली जाती हैं। मौसम के अनुसार पशुपालन क्रिया का स्थानान्तरण होता है। भोटिया लोग जो व्यापारी हैं वे अपने पशुओं के उत्पादन (ऊन, खालें, याक की पूंछ, आदि) के बदले चावल, गेहूं, नमक, मिर्च, शक्कर, तम्बाकू, रंग-बिरंगी मालाएँ, सिगरेट, आभूषण, सूती कपड़े और एल्यूमिनियम के बर्तन खरीदते हैं।

सामाजिक व्यवस्था- भोटिया लोगों में विवाह माता-पिता द्वारा तय किया जाता है। विवाह अधिकतर कार्तिक, माघ और फाल्गुन में या ग्रीष्म ऋतु में किए जाते हैं। शादी बड़े आनन्द-प्रमोद का अवसर होता है, इस अवसर पर स्त्री, पुरुष सुन्दर वस्त्र पहनते हैं, नाचगाना होता है और स्त्री, पुरुष और बच्चे सभी शराव पीते हैं। ये लोग हिन्दुओं के रीति-रिवाज मानते हैं। केवल एक पत्नी प्रथा प्रचलित है। पति की मृत्यु के उपरान्त विधवा को पति की सम्पति पर पूर्ण अधिकार होता है, वह दूसरा विवाह नहीं करती।

इनके स्वभाव एवं कार्यों पर इनके वातावरण का स्पष्ट प्रभाव पड़ा है। ये मितव्ययी, चतुर, साहसी और परिश्रमी होते हैं और एक से अनेक कार्य करने को तैयार रहते हैं। ये सदैव हँसकर रहते हैं और अपनी लम्बी यात्रा की थकान को हँसी और गानों द्वारा दूर करते हैं। ये न केवल अन्धविश्वासी होते हैं तथा भूतप्रेतों के पूजक होते हैं, वरन् इनकी आदतें बड़ी गन्दी होती हैं। पानी से घृणा करते हैं और शायद ही कभी अपने कपड़ों को धोते हों। ये सीधे-सादे, निश्छल एवं धार्मिक प्रवृति के होते हैं। प्रतिकूल वातावरण से इन्हें सदैव संघर्ष करना पड़ता है, अतएव ये न केवल परिश्रमी ही हैं वरन् सहनशील भी हैं |

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Khusi Sharma

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