क्षेत्रफल : 2520 वर्ग किलोमीटर
जनसंख्या : 1505324
जनसंख्या घनत्व: 597 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी/
लिंगानुपात: 887
साक्षरता दर : 76.44
गठन की तिथि : 1 नवंबर, 1966
मुख्य उद्योग : लिबेटी शूज, बासमती चावल
परिचय :
महाभारत काल से जुड़े पराक्रमी योद्धा कुन्ती पुत्र दानवीर कर्ण के नाम पर करनाल का नाम पड़ा। करनाल का प्राचीन नाम कर्णालय हुआ करता था। सन् 1739 में नादिरशाह की मुहम्मद शाह के खिलाफ जीत के बाद यह शहर सुर्खियों में आया।
- जिला करनाल की सीमाएं पानीपत, कैथल तथा कुरुक्षेत्र जिले की सीमाओं से लगती हैं। इसके पूर्व की तरफ उत्तरप्रदेश की सीमा लगती है जिसके साथ-साथ यमुना नदी निकलती है।
- करनाल में अनेक बड़े व मध्यम उद्योग हैं। जिनमें लिर्बटी सूज लिमिटेड, लिबर्टी फुटविअर, लिबर्ट ‘इंटरप्राइजिज, चमनलाल सेतिया एक्सपोर्ट अति प्रसिद्ध
- सैनिक स्कूल, कुजपुरा भी जिला करनाल में स्थित है। इसे सन् 1961 में स्थापित किया गया था | इस स्कूल में लड़कों को एनडीए में दाखिले के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है।
- करनाल में स्थित राजकीय पोलीटेक्नीक संस्थान, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, शूगरकेन ब्रिडिंग इंस्टीट्यूट, स्माल इण्डस्ट्रीज सर्विस इंस्टीट्यूट तथा गेहूँ शोध निदेशालय ने करनाल को नई पहचान दी है।
- करनाल में दो रेडियो स्टेशन हैं- रेडियो धमाल और रेडिया मन्त्रा हैं।
- कर्ण स्टेडियम करनाल में स्थित है।
गेहूँ शोध निदेशालय : सन् 1965 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् अर्थात् आई.सी.ए.आर. ने सर्व भारतीय समन्वयित गेहूँ सुधार परियोजना की शुरूआत की। वर्ष 1978 में इस परियोजना को गेहूँ शोध निदेशालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। उस समय निदेशालय भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान या आई.ए.आर.आई. के अधीन था। सन् 1990 में निदेशालय को आई. ए.आर.आई. से अलग कर निदेशालय परिसर को करनाल में स्थानान्तरित कर दिया गया।
केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान : कृषि योग्य जमीन से लवणता दूर करने की दिशा में केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान की स्थापना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अर्थात आई. सी. ए. आर. के अधीन की गयी थी। संस्थान की स्थापना सन 1969 में की गयी थी। संस्थान का मुख्यालय करनाल के जरीफा वीरां गाँव में काछवा रोड पर स्थित है। करनाल स्थित मुख्यालय के अलावा संस्थान के अधीन तीन क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र हैं-केनिंग टाउन (पश्चिम बंगाल) स्थित क्षेत्रीय केन्द्र समुद्र तटीय लवणीय मृदाओं की समस्याओं पर अनुसंधान का कार्य करता है। भरूच (गुजरात) स्थित क्षेत्रीय केन्द्र काली मिट्टी की लवणता समस्याओं के लिए और लखनऊ (उत्तर प्रदेश) स्थित क्षेत्रीय केन्द्र गंगातटीय एल्यूवियल सॉयल भूमियों पर अनुसंधानरत है। केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान की स्थापना के लिए एक इण्डो-अमेरिकन जल प्रबन्धन विशेषज्ञ समिति द्वारा सिफारिश की गयी थी।
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान : राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल की स्थापना मूल रूप से इम्पीरियल इन्स्टीट्यूट ऑफ एनीमल हस्बैंडरी एंड डेयरिंग के रूप में बंगलौर में सन 1923 में हुई थी। वर्ष 1936 में इसका समुचित विस्तार कर इसे इम्पीरियल डेयरी संस्थान का नाम दिया तथा सन् 1947 में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान का मुख्यालय इसके वर्तमान स्थान करनाल में स्थानान्तरित किया गया।
मधुबन पुलिस प्रशिक्षण परिसर : राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर एक पर करनाल से आठ किमी दूर पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय स्थित है।
माता प्रकाशकौर मूक बधिर एवं वाणी विकलांग केन्द्र : यह केन्द्र गूंगे-बहरे बच्चों को शिक्षित करने में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहा है।
कर्ण तालाब : राजा दुर्योधन के परम मित्र और सूर्य के पुत्र राजा कर्ण के नाम पर कर्ण ताल का निर्माण किया है। माना जाता है कि इस स्थान पर राजा कर्ण दान रूप में लोगों को सोना दिया करते थे।
देवी मन्दिर, सालवान : करनाल जिले के गाँव सालवन को मेलों का गाँव माना जाता है। इस गाँव में महाराज युधिष्टिर ने दशाश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया था। यह गाँव कभी राजा सालीवान की राजधानी हुआ करता था।
मामा-भानजा मुगल सराय, घरौंडा : यह सराय दिल्ली, लाहौर (तत्कालीन मार्ग) पर घराड़ा में 1632 ईस्वी में सम्राट शाहजहाँ के शासनकाल में खान फिरोज ने विश्रामगृह के रूप में बनवाई थी। भारत सरकार की अधिसूचना संख्या 1083 के अनुसार इसे 1 दिसम्बर 1914 को राष्ट्रीय महत्व का संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था।
कर्णझील या ओयसिस : जिला करनाल में पर्यटन विभाग ने शेरशाह सूरी मार्ग पर अम्बाला की ओर लगभग चार किमी दूर पश्चिमी । यमुना नहर के दोनों और लगभग 60 कनाल भूमि पर कर्णझील तथा ओयसिस नामक पर्यटन स्थल विकसित किये गये हैं।
बू अली शाह कलंदर का मकबरा : यह मकबरा जाने-माने मुस्लिम संत बू अली शाह कलंदर की याद में गयासुद्दीन तुगलक ने करनाल में बनवाया था।
मीरां साहब का मकबरा : शहर के दक्षिण भाग में एक छोटी मस्जिद के साथ यह एक ऐसा मकबरा है, जहाँ मंडल परिवार क के सभी सदस्यों को दफनाया गया है। यह मकबरा इ सैय्यद मुहम्मद उर्फ मीरां साहब की याद में बनाया के गया था।
सेंट जेम्स चर्च टावर : प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर सेंट जेम्स चर्च में टावर करनाल में स्थित है। इस टावर का निर्माण थे 1806 ई० में हुआ था। लगभग 200 वर्ष पुराने जेम्स में चर्च टावर को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक घोषित किया गया है।
पराशर धाम, बहलालपुर :
करनाल से 15 किमी दूर करनाल ढांड मार्ग पर गाँव बहालोलपुर के वनप्रान्तर में पराशर आश्रम स्थापित है ‘पराशर धाम के नाम से प्रसिद्ध है। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस आश्रम का सम्बन्ध महर्षि वेदव्यास के पिता ऋषि पराशर से जोड़कर देखा जाता है। पराशर धाम में शिव मन्दिर भी बना हुआ है।
सीतामाई सीमागढ़ का मन्दिर : अवधारण है कि चौदह वर्ष के बनवास के बाद भगवान राम के आदेश पर लक्ष्मण ने सीता को जिस जंगल में छोड़ा था उसका नाम लाडवन था। इसी जंगल के नाम पर लाडवा शहर बसा हुआ है। उक्त जंगल की पश्चिमी दिशा में महाऋषि बाल्मीकि का आश्रम था जहाँ सीता अपने बनवास के दौरान रही थी। माना जाता है कि राम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा जब इस स्थान से गुजरा तो लव और कुश ने उसे पकड़ कर बाँध लिया था और राम की सेना से युद्ध किया था। माना जाता है कि इसी स्थान पर सीता जमीन में समा गयी थी। आज उसी स्थान पर सीतामाई का मन्दिर निर्मित है।
माता बाला सुन्दरी मन्दिर, बड़ागाँव : करनाल जिले के बड़ा गाँव में माता बाला सुन्दरी मन्दिर स्थित है।
गौतम ऋषि आश्रम, गोंदर : जिला करनाल के गाँव गोंदर में गौतम ऋषि का आश्रम स्थित है। लगभग पाँच एकड क्षेत्र में फैले इस आश्रम में शिव मन्दिर के अलावा कई देवी-देवताओं के मन्दिर भी निर्मित है।
निर्मल कुटिया : बाबा निक्कासिंह महाराज स्वयं छोटी कुटिया में रहकर कई लोगों की सेवा-सहायता किया करते थे। बाबा के ब्रह्मलीन हो जाने के बाद वर्ष 1960 में बाबा की याद में उनके अनुयायियों ने उनकी कुटिया को निर्मल कुटिया के नाम से नवाजा।
गाँधी मेमोरियल हॉल : करनाल में महारानी विक्टोरिया की याद में ● बने इस हॉल का नाम स्वतन्त्रता के बाद महात्मा गांधी के नाम पर रखा गया।
दरगाह कलंदर शाह : इसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी के सुपुत्र खिजारखान और शादीखान द्वारा करनाल में करवाया गया था। बू अली शाह कलंदर सालार फकीरुद्दीन का पुत्र था और अनुमान है कि उसका जन्म 1190 ईस्वी में हुआ था।
वेदव्यास की तपोभूमि, बस्तली : करनाल से कैथल मार्ग पर लगभग 35 किमी । दूर गाँव बस्तली महाऋषि वेद व्यास की तपोभूमि है।बस्तली का नाम व्यास स्थली का ही अपभ्रंश रूप है। माना जाता है कि महाऋषि ने यहीं ऐतिहासिक 7 धार्मिक महत्व के ग्रन्थों की रचना की थी।
असन्ध : करनाल से दक्षिण-पश्चिम दिशा में करनाल-जींद रोड पर असन्ध करनाल जिले का आखिरी कस्बा है। असन्ध इतिहास प्रसिद्ध नगरी असनि वित का विकृत नाम बताया जाता है। एक अवधारणा यह भी है कि असन्ध राजा परीक्षित की राजधानी हुआ करती थी।
तरावडी ( करनाल ) : तरावड़ी विश्व में अपनी सर्वोत्तम किस्म की बासमती चावल के लिए विख्यात है।
नीलोखेड़ी : इस कस्बे की स्थापना सन् 1947 में विस्थापितों के पुनर्वास हेतु की गयी थी। करनाल जिले के नीलोखेड़ी शहर में वर्ष 1990 में हरियाणा ग्रामीण विकास संस्थान की स्थापना की गयी थी। इस संस्थान द्वारा राज्य के प्रशासनिक अ कारी तथा पंचायती संस्थाओं के निर्वाचित जनप्रतिनिियों को ग्रामीण विकास के संदर्भ में प्रशिक्षण दिया जाता है।
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