वंशानुक्रम के नियम
- समानता का नियम: – सृष्टि का नियम है कि एक मानव, मानव को तथा पशु, पशु को जन्म देता है | अर्थात समान, समान जीव को जन्म देता है | इस नियम के अनुसार, जैसे माता-पिता होते हैं वैसे ही उनकी संतान होती है, बुद्धिमान माता-पिता के बच्चे बुद्धिमान तथा मंदबुद्धि माता-पिता के बच्चे मंदबुद्धि होते हैं |
- विभिन्नता का नियम:- इस नियम के अनुसार बालक अपने माता-पिता के बिल्कुल समान न होकर उनसे बुद्धि, रंग, स्वभाव में कुछ भिन्न होते हैं |
- प्रत्यागमन/ परावर्तन का नियम:- इस नियम के अनुसार,” बालक में अपने माता पिता के ठीक विपरीत गुण पाए जाते हैं | बहुत प्रतिभाशाली माता-पिता के बच्चों में मंदबुद्धि होने की प्रवृत्ति और मंदबुद्धि माता-पिता के बच्चे प्रतिभाशाली होने की प्रवृत्ति ही प्रत्यागमन है”|
वंशानुक्रम के सिद्धांत
- अर्जित गुणों के संक्रमण का सिद्धांत :- इस नियम के अनुसार माता-पिता द्वारा अपने जीवन काल में अर्जित किए जाने वाले गुण उनकी संतान को प्राप्त होते हैं क्योंकि इन गुणों का प्रभाव जनन द्रव्य पर होता है|
विकासवादी लैमार्क ने कहा है कि, “व्यक्तियों द्वारा अपने जीवन में जो कुछ भी अर्जित किया जाता है वह उनके द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले व्यक्तियों को संक्रमित किया जाता है” | लैमार्क के इस कथन की पुष्टि मैकदुग्गल और पावलव ने चूहों पर, हैरिसन ने पतंगों पर परीक्षण करके की |
उदहारण के तौर पर , जैसे जिराफ पशु की गर्दन पहले घोड़े के समान थी परंतु कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण वह लंबी हो गई और कालांतर में उसकी गर्दन लंबी होने का गुण अगली पीढ़ी में संक्रमित होता है |
- मेंडल का सिद्धांत( ग्रेगर जॉन मेंडल,20 जुलाई 1822- 06 जनवरी1884 ) :- मेंडल वनस्पति शास्त्री थे जो कि ऑस्ट्रेया के निवासी थे | इस नियम के अनुसार वर्णसंकर प्राणी या वस्तुएं अपने मौलिक या सामान्य रूप की ओर अग्रसर होती है | मेंडल ने मटर के पौधों और काले या सफेद चूहों पर प्रयोग किए थे |
इस नियम को चेकोस्लोवाकिया के एक पादरी मेंडल ने प्रतिपादित किया- उसने अपने गिरजे के बगीचे में बड़ी और छोटी मटर बराबर संख्या में मिलाकर वही तथा उगने वाली मटरों को फिर कई बार ऐसे ही बोया तो अंत में नतीजे उगने वाली शुद्ध मटर ( वास्तविक ) थी | इन्हें आनुवंशिकी का जनक भी कहते हैं |
- बीजकोषों की निरंतरता का सिद्धांत :- इस नियम के प्रतिपादक बिजमैन थे जो कि जर्मनी के थे | बिजमैन का कथन है कि “ बीजकोषों का कार्य केवल उत्पादक कोषों का निर्माण करना है, जो बीजकोष को उस बालक को अपने माता-पिता से मिलता है, उसे वह अगली पीढी को हस्तांतरित कर देता है | इस प्रकार बीजकोष पीढ़ी- दर- पीढ़ी चलता रहता है |” इस सिद्धांत के अनुसार शरीर का निर्माण करने वाला जनन-द्रव्य/ बीजकोष कभी नष्ट नहीं होता है | इस सिद्धांत की पुष्टि हेतु बीजमैंन ने कुछ चूहों को लिया और उनकी पूछे काट दी | इस प्रकार वह कई पीढ़ियों तक पूछे काटता रहा किंतु किसी भी पीढ़ी में कोई पूछ विहीन चूहा पैदा नहीं हुआ |
अन्य उदाहरण से यदि हम समझे जैसे एक मां जो कि किसी ब्यूटी पार्लर की मदद से अपने बालों को घुंघराले करवा लेती है, तो वह अपने बालों का घुंघरालापन वंशक्रम विरासत के रूप में अपनी बेटी को नहीं दे सकती है |
- डार्विन का सिद्धांत:- इस सिद्धांत के अनुसार इन्होंने अपने आप को निरंतर बदलती परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित करने पर बल दिया है | कुछ प्रजातियां अपने आप में अपने वातावरण से समायोजित होने के प्रयास हेतु कुछ आवश्यक परिवर्तन, सुधार या विकास कार्य करती हैं | यही परिवर्तन स्वाभाविक रूप में वंशक्रम धरोहर के रूप में आने वाली पीढ़ियों को हस्तांतरित किए जाते हैं |